मोक्ष की कुंजी भाग - 1 | Moksh Ki Kunji Bhag 1

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Moksh Ki Kunji Bhag 1 by जयनारायण - Jai Narayan

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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६४) रूपी खेबटिया (नाविक) है। समकित रूपी खेयटिया न हो तो सय साधन णन्य रूप ई । लेसे पिना बीन के वृदो उत्पत्ति, बाद्धि घ फ़ल नहीं होते, इसी प्रकार समकित (सच्ची, सम, सद्‌ विवेक ) रूपी बीज के धिना सम्पर्‌ ज्ञान, चाप्र फी उपात्त) स्थिति शरीर वद्धि भी नदीं हो सकरी तथा उसका फ़ल सत्य सुख ( मोत्त ) नहीं मिलता | तथा समकित नीच के समान है। जैसे परिना सौंप के मकान नहीं उर सफता उसी प्रफार धिना समक्तित के ज्ञान चारि नं उदर सकते । (४ ) प्रश्ष--समकित गुणको रोकने वाला श्रतरग कारण वया ह ! उत्तर--मिध्यात्व मोहनीय है । मिप्या अथीत्‌ खोटा मोहनीय अशीत गवना, ममत्व करना । जो बात खोटी खसे रचि, ममता करे सो मेध्या मोहनीय 2 । ऐसी युद्धि उसन्न दोने फा कारण मिध्यात् मोहनीय के क- दल हैं। और पुनः दसी बुद्ध से मिथ्याल भोहनीय कर्म का घघ होता है | (६) अश्न--मिथ्यात्त मोहनीय से कैसी बद्धि रेष है से সা




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