संचिता | Sanchita

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Sanchita by ठाकुर गोपालशरण सिंह -Thakur Gopalsharan Singh

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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संचिता जनवरी, १६१६ मार्गगा मे कमी न तुमसे, कोरे भी उपहार । मेरे हृदय-धाम में होगा, जहाँ तुम्हारा वास | तहाँ शीघ्र में हो जाऊँगा, निश्चय उच्च उदार । स्वार्थ कपट ३्षां का मन में, नहीं रहेगा लेश। उन्हं बहा देगी पल भर में, पावन दृग-जल-धार । क्रोध, विरोध, मोह) मद, मत्सर, लोभ, क्षोभ, अभिमान | सभी तुम्हारे प्रबल अनल में, होंगे जल कर क्षार | में न करूंगा कभी भूलकर, अपने मन का काम | मुझ पर होगा प्रेम! तुम्हारा, सदा पूण-अधिकार । गाऊँगा में सदा तुम्हारे, स्वर में जीवन-गीत । होगा लीन तुम्हीं में मेरा, सुख-दुखमय संसार ।




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