मानवी | Manvi

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Manvi by ठाकुर गोपालशरण सिंह -Thakur Gopalsharan Singh

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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मानवी हे शृज्ञामयों शोभा तू, करुणा की हमजोली । रहती रै वात्सल्य-भाव के रस से भीगी चोली । तेरे प्रेम-स्पश से पुलकित आँख जगत ने खोली । पर तो भी रह गई अभी तक निद्रित दी तू भोली! हे स्वामिनी नगत के उर की प्रेम - राज्य की रानी । युग - युग ॒के अगणित शो की तू हे कर्ण कहानी | पानव-कुल को शक्ति - दायिनी त्‌ है भव्य भवानी बनती है तू विश्व-विजयिनी ले आँखों में पानी। रोते हुए क्षुधित जग-शिश्षु की हे माता कटयाणी । सदा न्याय - रक्षा के हित तू हे रण में वीराणी । २ শি




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