कादम्बिनी | Kadambini

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Kadambini  by ठाकुर गोपालशरण सिंह -Thakur Gopalsharan Singh

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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कानन दीन-मलीन विश्व की छाया कभी न तुमका छूती हें; राजहंसनी सदा तुम्हारे प्रम्लोक की दूती है। ह। तुम जग-जीवन अम्लान, हे कानन कल-कान्ति-निधान ! जब प्रमी पद-चिह किसी खाज-खाज थक जाता নন विश्राम तुम्हारी ही मृद गादी में वह पाता हैं। >“ क, हा सुख-शान्ति-सदन उविमान, हं कानन कल-कान्ति-निधान ! पशुओं के विश्राम-सदन हो वन-विहगों के क्रीड़ा-स्थल; शोभागार सरस सुमनों के हो चंचल पर अटल, अचल । शैलों के सुन्दर परिधान, हे कानन कल-कान्ति-निधान ! ९




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