वृहत हिंदी लोकोक्ति कोश | Vrihat Hindi Lokokti Kosh
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
39.8 MB
कुल पष्ठ :
1162
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about डॉ भोलानाथ तिवारी - Dr. Bholanath Tiwari
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)दी प्रायः सरल होती हैं । व सूबितयों मं कथन के सौंदर्य पर विशेष दल होता है फितु लोकोप्तियों में यह आवश्यक नहीं है. 5 लोकप्रचलित होती है कतु सूर्वितयाँ नहीं उस तरह पसूबित और प्लोकोकित एक नहीं होती 1 यो बहुत-सी लोको्तियाँ सूर्बित भी हों सकती कि गे लोकोर्विंत और उद्ध नि सामान्य तथा पढ़े-लिखें मों में भी शब्द की प्रयोग बहुत निर्शिचर्त स एक अर्थ में होता । नस हाथ कर्गन आरसी कया या मैं तो मन तेल होगा ने राधा जैसी लोकोक्तियों की बात छोड़ दे तो लोगो में चार द्रकार की घारणाएँ हैं कक काफी लोग उपर्युक्त प्रकार की सामान्य लोकोक्तियों के अतिसिवत कदीर+ बिहारी दुद पद कवियों के ऐसे उंदोंशों को भी लोकोकित लोकोर्कितयों को तरह ही प्रयुक्त थे एक साधे सं सचघे सब साधे स्व जाई कबीर ऊधों की दद देव आलसी पुकारा सी गुन के सहस नर द़तु गुत कोय- गिर बराय । ख कम लोग हूँ जो सामान्य लोकॉर्षितयों उपर्पुवर्त अतिरिवत विभिर कवियों के पूरे छंदो दोहा चौपाई भादि को भी लोको 1 डे को लघुन दीजिए डारि जहाँ कार्म दे सुई करें. तरवारि 1 रहीम आवत ही हरसे नहीं नै नहीं सनेहे तुलसी तहाँ न जाइए बरसे मेह 0 --तुलसी इस वर्ग में दे जैसे गिरिधर ने न गुरु पंडित कवि यार देटा रन कर्वित्त तथा स्दैया जैसे खड़े-वडे हे हूँ । इन्हे लोकोर्बित की रिधि में लेने दालो का कहना छ्द द्वारा अपने बात के समय अन्प की दात के खंडन त्तयां जादि के लिए होते है। गर्तः भी लोकप्रचलित हू अतः लोकों हैं. 1 0 कुछ के कुछ ऐसे भी छंद हुजो पूरक एस भी बॉल कक सकते विन न भी प्रचलित हैं ही वर्ग के लोग ऐसे मानते हैं ठया उसे तर मी भर सात हैं राह
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