सूरज प्रश्न | Suraj Prashan
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
7 MB
कुल पष्ठ :
118
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
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গণি से अधिक सुखी दो सके, ख़ुद सुखी दोकर वह दूसरों को
सुखी कर सके | इस का विज्ञान के साथ व विरोध है न विशेष
हो. सकता ই।
हं | धर्म के प्रचार के लिये शिक्षण-शाराओं के समान जो,
छम्प्रदाय बनाये जाते हैं. भर उनों। पाव्यपुस्तकों के समान नो
शचार-तिचार के भनेक अवरूम्बन बनाये जाते हैं. उनमें से जो
श जीणे असामापिक आदि दो जाता है. विज्ञान उस का विरोध
' करता है । श्ान-संस्थाओं के समान थम संस्थार्थों का भी विकास
होता है और विकास में पुरानी कुछ बाते कट ही जाती हैं, पर इसे.
मूक क] विरोध न्ष क्ति । ऐसा विरोध तो विज्ञान विज्ञान में भो
সীল । णात्र के विज्ञान की बहुत-सी बातें आनेवाढे कक का
किज्ञान बदक सकता है-यंह् विज्ञान का विशेध नहीं है, विकांस है |
भ संस्याभी मे मी विकास इभा है और उस विकास में
विज्ञान का काफी हाथ है. ; भूत-विद्याच यह णादि के भपे के
आधार पर खड दर भी कित होते होते परगब्रज् या निरी्ष(«
/ बाद था सस्येश्वर्वाद पर खड़े हो गये ই।
. इससे इस बात का पत्ता तो चक्् दी जाता है कि विज्ञान
' धरम का विरोधी नहीं हैं बल्कि सद्दायक है । १९ आज का विज्ञान
धम परे सायक क्यें नहीं है ! बढ इस की पृद्धि क्यों नहीं करता !
इस का उशर यह दे कि विज्ञान परम का सेहायक है,
ब्रेरक, 9त्तेजक या कर्ता नहीं । इसलिये - धर अगर विज्ञान की
' सद्दायंता के ते। वद्ष देगा, न के तो बेह क्या करेंगा ! विज्ञन की जहाँ
तक मर्यादा दै-शक्ति दे; वहाँ तक बढ काम करेंगा। इस আটা
शग़र धर्म या. धार्मिकनजगत् या मनुष्य काम करेगा तो उस को
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