सूरज प्रश्न | Suraj Prashan

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Suraj Prashan by स्वामी सत्यभक्त - Swami Satyabhakt

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about स्वामी सत्यभक्त - Swami Satyabhakt

Add Infomation AboutSwami Satyabhakt

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
ক व 0 গণি से अधिक सुखी दो सके, ख़ुद सुखी दोकर वह दूसरों को सुखी कर सके | इस का विज्ञान के साथ व विरोध है न विशेष हो. सकता ই। हं | धर्म के प्रचार के लिये शिक्षण-शाराओं के समान जो, छम्प्रदाय बनाये जाते हैं. भर उनों। पाव्यपुस्तकों के समान नो शचार-तिचार के भनेक अवरूम्बन बनाये जाते हैं. उनमें से जो श जीणे असामापिक आदि दो जाता है. विज्ञान उस का विरोध ' करता है । श्ान-संस्थाओं के समान थम संस्थार्थों का भी विकास होता है और विकास में पुरानी कुछ बाते कट ही जाती हैं, पर इसे. मूक क] विरोध न्ष क्ति । ऐसा विरोध तो विज्ञान विज्ञान में भो সীল । णात्र के विज्ञान की बहुत-सी बातें आनेवाढे कक का किज्ञान बदक सकता है-यंह् विज्ञान का विशेध नहीं है, विकांस है | भ संस्याभी मे मी विकास इभा है और उस विकास में विज्ञान का काफी हाथ है. ; भूत-विद्याच यह णादि के भपे के आधार पर खड दर भी कित होते होते परगब्रज् या निरी्ष(« / बाद था सस्येश्वर्वाद पर खड़े हो गये ই। . इससे इस बात का पत्ता तो चक््‌ दी जाता है कि विज्ञान ' धरम का विरोधी नहीं हैं बल्कि सद्दायक है । १९ आज का विज्ञान धम परे सायक क्यें नहीं है ! बढ इस की पृद्धि क्यों नहीं करता ! इस का उशर यह दे कि विज्ञान परम का सेहायक है, ब्रेरक, 9त्तेजक या कर्ता नहीं । इसलिये - धर अगर विज्ञान की ' सद्दायंता के ते। वद्ष देगा, न के तो बेह क्‍या करेंगा ! विज्ञन की जहाँ तक मर्यादा दै-शक्ति दे; वहाँ तक बढ काम करेंगा। इस আটা शग़र धर्म या. धार्मिकनजगत्‌ या मनुष्य काम करेगा तो उस को




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now