दुनिया का चक्कर दस दिन में | Duniya Ka Chakkar Das Din Me
श्रेणी : कहानियाँ / Stories, दंतकथा , किस्सा / Fable
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
4.68 MB
कुल पष्ठ :
156
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)दुनिया का चक्कर
१२० सील से ऊपर नहीं जा रहा है । फिर उडान भी उतनी सधी और
सीधी नहीं हैं । वायुयान चरावर हिल-डोल रहा है । जैसे इसका सन्तुलन
नष्ट हो गया हो | कया बात हो गई !'
टेव का दिल जोर-जोर से स्पदन करने लगा । उसने जमशेद को
हटाकर स्वय चायुयान को चलाना शुरू किया । किन्तु उसे मी वही
हुआ |
जान और साम ने पारी-पारी से सचालन आपने हाथों मे लिया ।
उन्हें भी मशीन मे कुछ खराबी समभ पढी | चारों चिन्ता से व्याकूल
हो उठे |
शन्त में उन्हे विश्वास हो गया कि पीटर ने कुछ डुष्ठता की है ।
सहसा जमशेद ने कहा--'वे दोनो हमारे यान के पस्खों पर चढे
थ्रे| शायद पीटर ने एक ओर के हेलियम के श्रैलो में से कुछ गस
निकाल दी हो । वायुयान का सतुलन गड़वड दो गया है, एक श्र का
हिस्सा कुछ तर दूसरी श्रोर का कुछ श्रधिक मारी जान पडता
है । सतुलन ठीक न होने से मशीन की गति में और सधकर चलने मे
बाधा पढ़ती हैं ।*
गौर करने पर सभी को जमशेद की बात ठीक जान पड़ी । जमशेद
को पीटर पर बहुत क्रोध ्ाया । छल द्वारा ठौड मे जीतने का प्रयत्न
देख, पीटर पर सभी खीभ उठे ।
वैसे दौर सच ठीक था । इजन दुरुस्त थे । दूसरे सभी कलपुरजे
पदले की तरह ही झ्रच्छी हालत में थे । जमशेट मन मसोस कर “गरड़
को चलाने लगा । जैंसे भी हो, पारा पहुँचने के पहले कुछ नी उपाय
नहीं क्या जा सकता था । जान और साम रात भर वायुयान चला
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