कौटल्य की शासनपध्द्ती | Kautaly Ki Shasan Padhyti

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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दूसरा अध्याय राज्य और शासनपद्धतियाँ राज्य की आवश्यकता--आचायें कौटल्य से बहुत समय पूर्व भारतवर्ष में राजसत्ता अनिवाय समझी जाने लगी थी । अवश्य ही यदह्द देश ऐसा भी समय बिता चुका था जिसमें शासनपद्धति का सबधा अभाव था। सहाभारत की साक्षी से सिद्ध है कि सतयुग अथात्‌ सृष्टि की प्रारम्भिक अवस्था में यहाँ बहुत समय तक राजा या राज्य दंडकतो या दंड कुछ भी न था । उस समय जनता की कैसी स्थिति थी तथा राज्य की उत्पत्ति किस श्रकार हुई इस विषय में हमारे प्राचीन लेखकों के कई मत हैं । पाश्चात्य विद्वानों ने भी राज्य के उत्पत्ति के सम्बन्ध में कई सिन्न-सिन्न सिद्धांत स्थिर किये हैं। आाचाये लिखता है कि राजशक्ति अप्राप्त वस्तु को प्राप्त करानेवाली प्राप्त पदार्थों की रक्ता करने वाली सुरक्षित पदार्थों में वृद्धि करने वाली और ब्रृद्धि को प्राप्त किये हुए पदार्थो को उचित स्थान में लगाने वाली होती है । संसार के निवाहद के लिए राजशक्ति की आवश्यकता अनिवायेँ रूप है। जनता को ठीक-ठीक रास्ते पर चलाने की इच्छा रखनेवाले राजा को राजशक्ति-सस्पन्न रदना चाहिए । अच्छी तरह प्रयुक्त राजशक्ति प्रजा को धर्म अथ और काम से युक्त करती है । अज्ञानता-पूर्वक अथवा काम या क्रोध के कारण अनुचित रीति से । युक्त की हुई राजशक्ति वानप्रस्थ और परित्राजक जैसे व्यक्तियों को भी कुपित कर देती है फिर गृहस्थों का तो कहना ही कया है । यदि राजशक्ति का प्रयोग सवथा रोक दिया जाय तो जिस प्रकार बड़ी मछली छोटी मछलियों को खा जाती




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