जैन तीर्थयात्रा | Jain Tirthyatra

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Jain Tirthyatra by ज्ञानचंद्र - Gyanchandra

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( १४ ) है जिस के पियेजाने से नारा निकल आता है इस लिये यात्रा में पानी छान कर ही पियो छान कर ही रसोई में रगाओ परन्तु इस बात का ध्यान रखना चाहिये कि जब तक नलके का पानी भिरु सक कवे का नहीं पीना क्योकि ऋवे के पानी में अनेक वीमारी उत्यन्न होने कं कारण मिल हुए रहते इं नखके का जर्‌ साफ़ करके छान कर नलकों में भेजा সালা ই): १७ कुछ छोटी बड़ी कोथलियां भी सिलवा कर जरूर साथ ले जानी चाहियें क्योंकि यात्रा में आटा चांवल दाल वेसन चीनी नमक मिरच बगेरा खरीद कर साथ लेजाना होता है ॥ १८ रास्ते में मसाला कूटना साफ करना कठिन होता है इस लिये कुछ मसाला भी साफ कर के कूट कर साथ लेना चाहिये ॥




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