नारीधर्मप्रकाश | Naridharmprakash
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
2 MB
कुल पष्ठ :
51
श्रेणी :
हमें इस पुस्तक की श्रेणी ज्ञात नहीं है |आप कमेन्ट में श्रेणी सुझा सकते हैं |
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about गंगाविष्णु श्रीकृष्णदास - Gangavishnu Shreekrishndas
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)८ नारीधमेप्रकाश ।
शिक्षा-जो किसी कारण से पिता, स्वामी या पुत्रों के
साथ विमनता हो जायती स्री को उचित हे कि, उस विरोध
के दूर करने का यज्ञ करती रहें. और इन लोगों को छोड-
कर कभी जुदे रहने की इच्छा न करें क्यों कि, स्लरी के अलग
और स्वतंत्रता से रहने पर छोग ( दुनियां ) उस के चरित्र
पर सन्देह करने छग जाते हैं. चाह वह अपने मन से अपने.
को केसी ही सुचरित्रा क्यों न समझती हो. इस के सिवाय
अलग रहने पर दुष्ट छोंग उस को खोटी सहाह देने और
बुरे कामों में लगाने के लिये तैयार हो जाते हैं. जब उस सखी
के सुचरित पर संदह हु तव केव उस के ही माथे क-
लंक नहीं लगता, वरन उस के पति और पिता के दोनों ही
के कुठ कटंकित ओर नदित हा जाते है. इस लिये सियो को
सदा सावधान रहना चाहिय कि; 1जेन कार्यां से इतनी हा-
नि हो उन की कभी न करें.
[ कर द
सद्ा प्रदष्या भाव्य गरहुकार्स्य् दृक्षया ॥
+ টি পি
सुसस्कृतापस्करया व्यय चामुक्तहस्तया ॥ ४ ॥
[ मनुः ५ । ९०० |
दोहा-नित ही हर्षित चित रहे, गृहकाज हि परवीन ॥
खर्च अल्प सामग्रे गह, राखाह नाहिं मलीन॥४॥
अथ महाहषित चित्त रहें घर के काय्यों में चतुर
होना चाहिये. और घर की सब चीज वस्तु साफ
सुधरी रक््खें बहुत खच कभी न करें। ४ ॥|
शिक्ष्य-त्वी को सदा ही हर्षित मन से रहना चाहिये-
स्वामी यादि झूठ जाय, सास, जिठानी इत्यादि गुरुजन यादि
क्रा।प करें; पुत्र, नौकर, चाकर इत्यादि छलघ॒ुजन यदि जी हु-
User Reviews
No Reviews | Add Yours...