हिंदुस्तान त्रैमासिक | Hindustani Traimasik
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
36 MB
कुल पष्ठ :
184
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)1हन्दुस्तानां भाग-६५.
इस दृष्टि मे निश्चय एक सच्चाई है। इतिहास जब कालातीत हो जाता है, उसका
९।म जब बिगड़ जाता है , या उसमें तिथिक्रम होता ही नही, या घटनाओं कातिथि
< ब सम्बन्ध नहीं रह जाता, तब वह इतिहास तो नहीं रहता, पर पुराण फिर भी वह
य बना रहता हे। क्योकि घटना का काल विशेष से सम्बद्ध रहना ओर कालक्रम ये
=; होना ही इतिहास होता है ओर इसी विचार से वह पुराण से भिन्न अपनी स्थिति.
{रयम रख पाता है, वरना निःसंदेह समूचा इतिहास पुराना होने से पुराण तो है ही। `
= वासुदेवे जी का कहना था कि दृष्टान्तपरक इतिहास में--- जहाँ इतिहास सामाजिक
[करा लाभ कर प्रयत्न होता है-- तिथि का दैत्य प्रविष्ट होकर अनर्थं करता है ओर
पध का ज्ञान दूरी के कारण दृष्टिगत न होने से व्यर्थहो जाता है। जैसे अगर मान्धाता
षय मेँ कोई कहे कि चार अरब, तेरह करोड, सत्ताइस लाख, अटर्टावन हजार पाँच
न साल हुए जब वह राजा हुआ था। तब संख्यापरक वाक्य में निहित बोध को कोई
गम नहीं कर पाएगा और न इस बोध को धारण कर लेने पर ही उसका कोई विशेष
होगा, अतिरिक्त इस उपलब्धि के कि अत्यन्त प्राचीन काल मेँ मान्धाता नाम का एक
था, जितना कहने से ही दृष्टान्तमूलक इतिहास का उदेश्य सफल हो जाएगा। उसी
से इतिहास-दर्शन' शीर्षक से उन्होने भाधुरी' मे (शायद) एक लम्बा ओर विशिष्ट
सन् ३० के आसपास लिखा था। (पत्रिका का नाम ओर लेख छपने के साल का
ख याद से ही कर रहा हूँ। उनमें कुछ भेद हो सकता है।) पर उनकी यह दृष्टि
कतर इतिहास-दर्शन के चिन्तन तक ही सीमित थी और इससे उन्होनें सभी तिथिपरक
ने में, इतिहास के तिथि-तथ्य में, कोई अन्तर नहीं पड़ने दिया। द
उदाहरण के लिए, आर्यों के भारत में आगमन और उसकी तिथि अथवा कालिदास
मय के सम्बन्ध में भारतीय विद्वानों में उनकी तिथियों को प्राचीनतर करने का जो
ह है, वह उनमें नहीं था। उस कमजोरी से वह सर्वथा वंचित थे। आर्य बाहर से आए
1 नहीं, इस सम्बन्ध में उन्होने जहाँ तक मुझे ज्ञात हे कोई सम्मति तो व्यक्त नहीं को
जन अविनाशचन्द्र दास की सर्वथा अवैज्ञानिक तर्क -श्रृंखला को जो कुछ तथाकथित
प्कृत विद्वानों ने फिर से उद्बेधित करने का प्रयत्न किया है, वह किसी अंश में भी उन्हें
रन हो सकी।
वैज्ञानिक पद्धति का आश्रय
हाँ, ऋग्वेद के सत्य के विषय में निश्चय उनकी धारणा इससे भिन्न थी। उसके
-सत्य को काल देशातीत सत्य मानने ओर उसका वेसा ही अर्थ करते समय वह उस
२, ¡को दोनों से स्वतन्त्र मानते थे) यह सहीहै कि वेद -मंतरी के उनके भाष्य को अनैकं
ठ ने वैयक्तिक और “आर्बिट्रेरी” (निरंकुश) माना, पर उन मंत्रों के ऋषियों अथवा
- ऊ. 1 उल्लिखित राजाओं के समय के अनुमान में उन्होंने कभी “आर्बिट्रेरी! पद्धति को
अ य, नहीं दिया, सर्वथा वैज्ञानिक पद्धति से ही उनके कालक्रम को निरखा । मंत्रों के
... स॒ +भाष्य-सम्बन्धी दृष्टि को छोड़ उनके प्रस्तुत रूप में ऋषि-प्रणयन का समय भी उन्होंने
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