राष्ट्र - भाषा की समस्या और हिंदुस्तानी आंदोलन | Rashtra - Bhasha Ki Samasya Aur Hindustani Aandolan
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
29 MB
कुल पष्ठ :
297
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)जिसमें जनता का बालचाल में अग्रचलित परंतु आवश्यक
सभी शब्द [ प्रायः अनावश्यक शब्द भी ) हिंदी के खाः
भाविक शख-स्रोत संस्कृत को अगेज्ञा अरबी-फारसी से लिए
जाने हैं। उठ-शेल्ी का किन परिस्थितियों में जन्म हुआ
आर उसका किस प्रकार विकास हुआ. यह इतिहास का
विषय हैं, यहाँ उसके विवेचन करने को जरूरत नहीं। यहाँ
इतना कहना यशथेष्ट होगा कि एक प्रथक साहित्विकं शैली
के रूप में उद के विकास मे उठ की प्रथक लिपि का बहतद बड़ा
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हाथ रहा हे। उद्शेली भो दा सो ब्ष पुरानी हो चुकी हैः
ओर अब उससे मकंगड़ना बेकार हे। बह अब हटाई नहीं
जा सकती । जब तक उद की लिपि प्रथक् रहेगी; तब तक
उदू भी प्रथक रहेगी । अगर उद् हिंदी-लिपि अपना भी ले,
जैसा होता असंभव दिखाई देता है, ता भी वह हिंदी नहीं हो
जायगी। यह सोचना मन के लड्डू फोड़ने के सिवा और
कुछ नहीं कि उद के ३० प्रतिशत अरबी-फारसी-शब्द त्याग
दिए जायेगे. ओर उनके स्थान पर संस्कृत के शब्द आ जायेंगे
अथवा हिंदों अपने स्वदेशी संस्कृत-शब्दों को छोड़कर अरबी-
फ़ारसी के शब्द अपना लेगी। हमारा उद से कोई विरोध
नहीं, लेकिन उत्तरी भारत की साहित्यिक भाप अथवा राष्ट
भाषा कं प्रकरणम उदू (आर उद-लि।प ) को हिंदी ( ओर
हिंदी-लिपि ) के समकक्ष नहीं रक्खा जा सकता | कारण
= ও
द्य आयशा के । सदः अय नप ञे
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