मौली | Mauli
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
18 MB
कुल पष्ठ :
177
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)सैली | [ १७
कैसे आगे बोलू ।
माया एक वेश्या है। इसी माया ने एक दिन, अपने हाथों की
सारी चढ़ियाँ गुस्से में एक एक कर तोड़ फश पर बखेर दीं। समझाया
तो वह चोली, दसरे की दी चीजों के प्रति मेरा मजाक जड़ा, भेरी
मजबूरी के! मजबूरी साबित कर देगे; धन्य है तुम्हारे स्वाथ के ! अब
इनके न पहनू गी। कल तुम चार चड़ियोँ ले आना ।*
में आज तक उसके लिए चड़ियाँ नहीं ला सका । उसके हाथ खाली
न मैं जूड़ियाँ दूंगा, न वह खुद पहनेगी। काँच की वे चड़ियाँ
खन-खन-खन करती हुई জন फश पर बज उठी थीं, বন ही मैंने सोचा
॥--क्या कभी माया अपने के! समझे सकेगी ?
तुमसे कहना भूल गया | एक दाशनिक से पिछले साल पाला
पड़ा था | उस दारानिक दोस्त की जिन्दगी के अध्याय बड़े मजे के हैं ।
जरा कहीं अफसोस नहीं हे।ता। बढ़े हँसमुख, बिल्कुल बेतकल्लुफ,
खुश-मिजाज, दुनिया भर से त , बादशाह तबियत के ! किन्तु
गीती घर पर बीमार, दवा के। एक पैसा नहीं। आधी रात, 'केलेरेट
की बोतल दबाए मेरे पास श्राये, कहा, चलो ।
मै समभाकिखात्ादहागयादहै।
नहीं यार, वह खूब है। कह, ओोवरकेट खू टी से निकाल कर
मुझे सॉपा। उनके साथ चला आया। देसत उन दिनों शहर की
नामी तवायफ हुस्नबानू से 'भारतीय-सभ्यता के विकास का सब्रक ले
हे थे |
बड़ी अदा थी उस मुस्लिम युवती में । जन्र उसने बह लाल-लाल
रंग गिलासों में ठाल कर पीने के! सौंपा, पीकर लगा कि आँखें अब पूण
खिल उठी हैं| में उसके चरणों में लेटता हुआ बोला, देवी, तुम कोन
लाक की अप्सरा है।
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