आलोचना | Aalochana

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Book Image : आलोचना  - Aalochana

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about शिवदान सिंह चौहान - Shivdan Singh Chauhan

Add Infomation AboutShivdan Singh Chauhan

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
हिन्दी गीति-काम्य का पिकात र झुद भारुदुण संय कथह गोरख रदिश अवसरो 1 एतां वस्खवोणं असयाश বিনীত हरसि ॥ पे हृष्य, सुह की इवा के तहारे राधिका के (मुँह पर पढ़े) गो-रज को उड़ाफर तुम अन्य गोपियों के गौरव का भी रण कर रहे हो | याश्च सजाहण निदेश पास परिसंविश्रा शिठण गोरी | सरिस गोविआण ভুত कपोल एदिमागश्रं कदय । गोपियाँ कृष्ण के ताथ टृत्य-निरत हैं, उनके चिकने ललाट पर कृष्ण वी परछाई पड़ रही है। श्रपने बगल की गोपी की रुत्य प्रशंसा के बहाने कान के पस अपना मुँह ले जाकर एक गोपी दूसरी के कपोल पर प्रतिबिम्बित कृष्ण फो चूमती है । जयदेव गाथा-प्रभावित कवि जरूर हैं किन्तु लोक-सुलम भावना उतनी साफ ओर सीधी शैली में उनकी रचनाओं में नहीं उतर पाई, जितनी कि विद्यापति मैं । विद्यापति के श्रलंकार भ्रंग रस, नायिका-मेट, साहित्यिक प्रयोग आदि परम्परागत हैं, उनकी शैली प्रालीन संस्कृत एवं अऋपभ्रंश के प्रभाव से ओत-प्रोत है, फिर भी वे लोक-गीति-परम्परा के बहुत अधिक समीप हैं। उन्होने लोक जीवन की लीलाएँ, उनके विश्वास, उनकी रीति-नीति की भी अपनी रचनाओं में अंगीभूत जिया है। और इस कारण सौन्दर्य, भाव-विस्तृति, संगीतमयता और बेदना की जो तीत्रता विद्या- पति में आ पाई है, बहुत बार जयदेव उससे पीछे रह जाते हैं | एक स्थान पर विद्यापति ने नारी-रूप और शिव-मूर्ति का एक ही चित्र दिया है । उस चित्र में भी काव्य की सौन्दर्य-मावना आर कलात्मकता भक्ति से पीड़ित नहीं दो सही है और नारी मन का एक सहख सुन्दर परिचय मिलता है : कतम वेदन मोहि देसि मदना। हर महि वद्धा, मोहि छवति अना । विभुचि मूषन नहि, चानन करेन । बद छश्च नदिं, मोरा नेतक बसनू॥ नहिं मोरा जटाभार, चिकुरक बेनी । सुरसरि निं मोरा, ङदुमक भं शी ॥ दिन क बिन्दु मोरा, नह्िं हस्दु छोटा । खतल्लाट पावक नहिं, सिंदूरक फोंटा ॥ नहिं मोरा काकृकूट, गमद चारू । फलपति नहदिं मोरा झुकुता धारू।। अनह विधापति झुन देव कामा। एक पपु दुन नाम मोर वामा ॥ इसो चित्र को जयदेव ने भी उतारा है, किन्तु विद्यापति के चित्र को बह नहीं लगता ; हृदि विज्ञत्तत हारो गाय॑ सुअंगम भायकः; कव्य दश्च अणो कण्डे न सा गरञ धुत्रिः। मसछयज शथोनेदुं अस्यप्रिवा सेष्वे मथि, अहर श हर आंत्यानंग ऋुषा किसु जावस्ि।




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now