कबीर साहेब की शब्दावली भाग 1 | Kabir Saheb Ki Shabdawali bhag 1

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Kabir Saheb Ki Shabdawali bhag 1 by कृष्णदास - Krishandas

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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दे सतयुरु और शब्द महिमा ॥ शब्द ११ ॥ ताहि मारि लगन लगाये रे फिकिरव से वत ही में अपने में दिर में सब्दन मारि जगाये रे फ० ॥ _ बुड़त ही भर के सागर में बहियाँ पकरि सुमुकाये रे फ८० एके बचन बचन नहि दूजा तुम मेसे बंद छुड़ाये रे फ० ४३ कहें कबीर सुना भाइ साथी सत्तनाम गुन रे फ८ ॥2 ॥ शब्द १२ ॥ गुरू माहि घुंटिया अजर पियाइं ॥ टेक ॥ जब से गुरु माहिं घुटियापियाईं भें सुचित मेठी दुखिता ड़ ९ नाम जौषधो अघर कटोरी पियत अघाय कमति मेरो२॥। ब्रह्मा धिस्नु पिये नहि पाये खो जत संभू जन्म गे वाये ॥३ सुरत सिरत कर पिये जा का कहेँ कघीर अमर हे।य से ई। ॥ शब्द ३ ॥ जिनकी लगन गरू से नाहीं ॥ टेक ॥। ते नर खर कुकर सम जग में बिरथा जन्म गंवाहीं ।१॥। अमृत विषय रस पीवें छग छूग तिन के साह ॥२0। हरी बेल की कारों तुमड़िया सब तीरथ करि साठ ॥३। जगव्नाथ .के दरसन करके अजहे न गई कड़वाई 11901 जैसे फल उजाड़केा लागेा बिन स्वारथ भारि जाई ॥५। कहें कबीर बिन बचन गुरु के अंत काल पछ्डिताई ॥६ निशा फल रत कक . के थी रही।




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