गल्प - पारिजात | Galpparijat

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Galpparijat by सूर्यकांत - Suryakant

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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भूमिका |] गल्प-पारिजात १३ ही इनमें स कुछ की रचनाओं मे कहीं कहीं घाराप्रवाह का उथनिक्रम, भावव्यंजना की उखड्‌ पुस्‌, शब्दां ओर वाक्या की शिथिल उठ-बैठ या उनका अलगविलगपन इस सीमा का पहुँच गये हैं कि उन्हें ठीक किये बिना इनकी रचनाओं को अवोध छात्रों के संमुख रखना अनुचित समझा गया हैं; सपादक न रसे स्थलों पर भी यथेए्ट परिवतेन किया है । जह वाक्य बिन्यास के औचित्य ही की अनुचित उपेक्षा की गई हो, वहाँ लिये और मेद का और अलुखार तथा अनुनासिकाक्तरों के सदपयोग का कहना ही क्‍या । इन बातों मे हस्तश्षप न कर इन्द मालिक रूप में ही मुद्रित कर दिया गया हैं। टिदीकथा- लेखकों के अधेबिराम, बिराम, डेश, हाइफन आद के उपयोग को देखकर तो कस भी व्याकरणविद्‌ का मस्तिष्क चकरा जायगा; इन्हें भी कुछ स्थलों को छोड़ ज्ञेसे का तेसा छाप दिया गया है । प्राथना और आशा है कि इस प्रकार की खटकने वाली घ्रुटियों पर भविष्य मे हिंदीकथालेखक ध्यान देंगे झर कला > ২১ और भावों की द्टि से भव्य संपन्न हुई अपनी रचना ओं को भाषा की दृष्टि से भी परिमार्जित तथा परिपूत बनाने का प्रयत्न करेंगे । হল हार्दिक प्राथना के साथ हम उन सब कथालेखकों कते कोटिशः धन्यवाद देते हें, जिनकी मनोरंजक कहानियाँ वारिजञात में उद्छुत की गई हैं। परमात्मा करे, उनकी रतिर्यो




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