प्रणाचार्य | Paranacharya
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
22 MB
कुल पष्ठ :
422
श्रेणी :
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No Information available about वैद्य बांकेलाल गुप्त - Vaidya Bankelal Gupta
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)कां श्रन्तिम निष्कषं निम्न क्िखित है-- . ,“ ` `,
“गजारयत' पविदेमगर्न्ध वीड्छुन्ति सूतात्फलमण्युदारम्
केचादनसा दपिसस्यंनात कपिबलास्नो मिपजश्चमन्दा?! .
“रसवलिजार् विनाड् न खलु सरजो हर्य॒ क्षमो रसेन.
“न जलदकलघौत पाकहीनः ष्यशाति रमायनतामिति
সলিসাঃ हे
পন হর্ন নীল আহ मग्प्राप् वलादि सिद्धिकृत-
कृत्या ।
कृपया: प्राप्य समुद्र॒ वगारिकालाभनन्तुण्ः च्रा९ र,
पारद से विशेष गुण आह करने के জি, नितांत
अनिवार्य है कि पारद को विशेष रीत्या शुद्ध कियां जाये
ओर उसमें अ्रश्नक, स्वर्ण ओर गंधकाधि चीजों का जारण
किया जावे । बीज जारण रद्दित पारद विशिष्ट था श्रलौ-
किक प्रभाव व्यक्त करने सें सर्वया श्रसमर्थे है। श्रभ्र-
कादि बीज जारित पारदमे चने योगो का प्रभाव ही
समार को वलात् श्रपनी श्रोर वीच सकता हें ।
बन्धुवगं यदि श्राप ब्रीजादि जारित श्रष्ट सस्कृत
पारद निर्मित योग प्रयोग कन्गे तो निश्चय दी आप
विदेशौ श्रौषधो के प्रयोग को निलाज्ञकी दे सकते हैं ।
টি ५ 1 4 [र]
„ , पारठ के आठो संस्कार करना असस्भव नहीं हें।
यरनसाध्य अवश्य है। अक्रिया स्पष्ट उल्लिखित दे केव
হে उद्यम और कटिवद्धता की कसर देँ। हमारे इस 'श्रालस्य
ने भ्रायुर्वेद के प्रभाव को कुणिउत कर दिया ই। গন
पुन चद परिश्रम द्वारा इसे पुनरुजीधित करने का ससय
उपस्थित है। , , |
यदि आप शीतज़'मस्तिप्क से घिचाई करें तो आप
अनुभव करेंगे कि लगभग १९० वर्षो से आयुर्वेद, का
एजोपेथी से शीत यद्ध चल रद्दा है । हि
„= इम यद्ध में श्रापको शल्य चिकित्सा के সায়া
पराजय भिन्न चुकी ই । काय चिकित्सा के प्रद्वण में भी
आप छबसढ़ा रहे हैं। ग्रदि आप इस मोर्चा को बचाना
वाहते हैं तो पाणों-की बाजी जगाकर पारदु की शरण लें
» सम्पाएकीय
= ५ ~ ~
|)
भेरा विश्वास है कि अष्ट स'स्क्ृत ओर बीजजारित पारद्
से निर्मित ओषधीय शस््राखों ,से ही आप इस शीत युद्ध
को विजय कर 'सकगं !
ऊर्ध्यंजन्नज शोगो 'की चिकित्सा के छेत्र से भी वेदय
शर्नें: २ हथियारें डान रटे दै । इस विशेष त्रुटि ओर
टु.खद ` वस्था को देखकर ही ऊर््यजन्नुज रोगाक् के
प्रकाशित व सकत्लनन की चेष्टा की गई है। ऊर्धाक्ष से
बृहत् रोग भी प्याह हैं परंतु जन्नध्व॑ भाग “में ऐसे भी
মতি रोग हैं जिनसे वैद्यो को प्रतिदिन दो चार होना
पडता है । इस मोच के प्रति 'इससे' अधिक ठील देने
का श्रथं, इस जेन्न में भी पराजय द्वोना। श्रतः श्रयु्वेद
को उन्नति के शिखर पर देखने वालों को अमी से सचेत
और सतर्क होने का पर्याप समय ই।.
लेखकों की विचार धारा
ऊध्वंजन्नरुज विशेषांक के प्रधान सम्पादक बनने से
पूर्व नेक पन्नो का प्रधान, सम्पादकत्वेन सम्पादन करने
का अचसर सुझे লিজা ই। परंतु इस वार इस विशेषांक
के जिए जो निवेदन पन्न माननीय लेखक मद्दानुभाषों की
सेवा में लेख प्राप्ति के क्षिण लिखे गए थे, उनके उत्तर के
रूप सें जा पन्र कतिपय मान्य लेखक महानुभावो कौ
ओर से प्राप्त हुये हैं, उनके पड़ने से कुछ नए विचार
सामने आ्राए हैं। इससे पूर्व इस प्रकांर के विचार लेखक
मद्दानुभावो की ओर से किसी भी विशेषाई सम्पादन काल
में मुझे नहीं मिले । ।
इन दिचारों के आधार पर निमश्चयात्मक यद्द कहा
जा सकता, है कि लेखक सद्दानुभावों” ओर पन्न संचालक
महोंदयों के सध्य एक खाई चिकरान खूप धारण कर
रद्दी दे ।
उन विचारों में से कुछ का सोरॉश यद्दा , दिया जा
रहा है जिससे “लेखक महानुभाषों के हृदय तज्ष पर जिन
विचारों ,ने अपने नायघीय रूप को व्यक्त करके चर्णा
स्मक पूव रूप लिया हैं वह पत्र सच्चाक्षकों तक पहुँचे
श्रार पत्र सद्चाजक समय की स्थिति के अनुसार अपनी
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