चन्द्रप्रभ - चरित | Chandraprabh - Charit

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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4 न ण ললিত ০৯ তহ ০ অত্র 3 1 ~~ थ ^ ই ~+ मन. ५4०५009 ~ ... अेन्नकृष्ण १ स॑० १९७२, पजिनका कि स्वर्गवास शक संवत्‌ १०३७ में हुआ था। एक वीरनन्दिका जिकर श्रवणबेह्गुलके ४७ वें शिलालेखमें है; परन्तु वे महेन्द्रकीर्तिके पशीष्य थे । | महाकवि वीरनन्दिका केवर यही एक चन्द्रप्रभचरित उपटन्ध है । उन्होंने इसके त्िवाय ओर कोई ग्रन्थ रचा या नहीं, इसका पता नहीं । इस गन्‍्थकी अन्तप्रशस्तिसि और आचार्य नेमिचन्द्रने उन्हें জিন दाब्दं स्मरण क्रिया है उससे, माम होता है कि वे केवर कवि ही नहीं थे-अखिल वाड़मय पर उनका अधिकार था, वे सभाओमें बोलनेवाले अच्छे वक्ता थे और पिद्धान्तशास्रोंके ज्ञाता भी थे । | कविने अपने स्थानादिका उल्लेख कहीं भी नहीं किया है । तो भी जान पड़ता है कि वे कर्णीटकश्रान्तके ही रहनेवाले होंगे । क्योंकि नेमिचन्द्र, चामुण्डराय आदि संब उसी प्रान्तमें हुए हैं । चन्दावाड़ी, बम्बई, | नाथूराम प्रेमी | রি ५४ है \ “ & 1




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