धर्म प्रवचन | Dharm Pravachan

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Dharm Pravachan by खेमचन्द जैन - Khemchand Jain

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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उत्तम क्षमा ५९ आकर बह कि हमारे वाबूकों खिलीनेका हवाई जहाज ले झाता, कोई स्त्री कहें वि हमारे बाबू वंगे खेलनेवत रेलका इंजन ले आना और कोई गरीब बुढ़िया श्रावर यदु वकि चात्र जी हमारे : पास-ये दो पैसे हैं इन्हें लो शरीर हमारे बबुबाकों एक मिट्टोका खिलीना ला देना । तो बबुबा किसको खेलेगा ? बयुवा उस गरीब घुढ़ियावग ही खेलेगा | तो गपोड़ियोरे लाभ नहीं होता, चिन्नु गुप्त दी अपने आप छिपे हुए झपने उद्धारके लिए संसारके जन्म मरणके चक्रोसे छूटने के लिए झगने आपके ज्ञानर्यभावकी श्राराधना हो तो यही उत्तम क्षमा है । यह उत्तम क्षमा चितामणिवी तरह है । ऊत लितामरिस जो विचारों सो मिल जाये । इसी तरह उत्तम क्षमा का सद्भाव करे उसके परिणामसे णांति उसे तरत्त मिलेगी। शांतिका बड़ा प्रभाव होता दे । घरमें रहते बाले पुरुषो्गें एक मुख्य पुरुष यदि शांतिका स्वभाव रखता हो तो घरके सब परि- নাহ जनोंका उस शांतिमें इलनेंगा व्यवहार चन जाता है। शान्तयुध्पर्की बृत्तिका सत्ममाय--एक सेठ सेठानी थे । रटानी ब्रु थी ग्रीर्‌ सेठ शांत था | बजाओबी दूछान फरता था । दुकानमें बहुल काम करना होता था । रास दिन यहीं है । समयपर भोजन खाने घर आये । सो उस सेठानीकों और कोई समय ने गिले कि बह सेब्स झछुछ पक्कू सफे । जब सेठ जी भोजन करने झ्ाते तो उसी समय वह अपना क्रोध निका- लती, गुके अमुक चीज वनवा दो, मुझे कभी बनवाकर नहीं देते श्रौर दो चार गालियां भी सना दे, बह बेचारा श्रारामस सुन ले और भर पेट भोजन करके श्रपना चल दै! एवः दिन भोजम कनके सीड़ियोंसे नीसे उतर रहा था । सेठानीको बड़ा गुस्सा श्राया तो जो दाल चावल बंग धोषन होता है उसे सेठकी प्रगड्रीपर छाल दिया । सेठके कपड़े भीग गये । सेठ सीढ़ियोंसे ऊपर चढ़कर सेठानीसे कहते हूँ कि सेठानी जी ! तुम गरजी নী चहुत थीं पर बरसी झाज हो । . बंडी शांतिसे उन्होंने जवाब दिया । तो सेठानी शर्मके मारे यड़ गई कि हमने विततना उपद्रव . किया, मगर इनकी क्षमाणीलताको धन्य हैँ । अब वह सेठ्के पैरोंमें गिर गई और बोली---भ्रव में कभी क्रोध न कझगी । यह क्षमा विद्वानोंका आभूषण है। विवेकी पृरुषोंकी यह क्षमा अन्तरज्ूमें रखनी चाहिये । অভ মাল लो कोई तुम्हें मार रहा है, वहाँ तुम यह समझ लो कि यह मुझे तो नहीं मार रहा है इस शररको हो मार रहा है, परन्तु शरीर तो मैं नहीं हूं, इस विवेकसे क्षमा झा ही जांयगी | मान लो व्यवहारमें यदि कोई गाली-गलीज श्रथया ख़ुरा - भला वह रहा है तो समझ सकते हो कि यह मुझे तो नहीं कह रहा, जिसने कुछ किया है उसे बह रहा होगा । झिसको कहे रहा हो कह ले, यह उसके कपायवाग विपाक है । वह. इस 'चैतन्यस्वभावकों तो नहीं कह रहा है, यह समभकर उन बुरे वचनोंको भी पी जाये ऋर्घात्‌ उपेक्षित बर दे, ध्सीको उत्तम क्षमा कहते हैं, क्योंकि ऐसां विचार करनेसे उसे श्रवसर मिलता है कि बह अननन्‍्तर निविकल्प तत्त्वकाी अवलोकन करे । इस प्रकरणमें उसके दिलमें क्रोवभाव ¢ দে ক ६५१ ५2




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