स्वामी रामतीर्थ | Swami Ramtirth

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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पाप कीं समस्या. ॐ জলাজন্ नष्ट । विवाह हानिकारक नहीं है, केवल वह कमज़ोरी ( हानिकर ) है जो उसमे क़ाबू जमा लेने पाती हे; चह घस्तुतः हानिकर है; भय, पदार्थों ओर रूप में लगन, “में देह हूं, मेरा साथी देह हे, ” इस कल्पना की पुष्टि करना, अधि कार जमाने की लालसा ओर उस का भाव ग्रहण करना पतनकारा तत्व है । यदि वेवाहिक संबंधों के पालन का यही ढेग हो, तो भन्नुष्य कभी आत्माउुभव नहीं कर सकता। বা ২১৯ বা . पिनेलोपी (17९1०107७) जब वीनती ओर उचधड़ डालती `हे, तो उसका काम कभी केसर समाप्तः हो सकता हे ? षष्ट मलुष्य भला कैसे उर्नीत कर सकता है जो सदा उस सड का निराकरण कर देता है कि जो उसने प्राप्त किया था ' बैदान्त निभयता से कहता है कि तुममे शक्ति का संचार होना चाहिये, तुम्हें डड्चतर प्रेम से परिपूर्ण हाना चाहिये, जिसे भूठ ही में प्रेम कहा जाता है, उसकी तुच्छता और नीचता से ऊपर उठना चाहिये--देद्दाध्यास से ऊपर उठो। यह है बीनने की क्रिया। जब तुम पति या पत्नी में केवल दे देखते हयो, तव सव किया धरा चौपट होज़ाता है। केस तुम उन्नति कर सक्ते हो? क्या इससे यह _ निकलता है कि लोगों को विवाह नहीं करना चाहिये! नहीं, किन्तु विवाह का उपयोग मिन्‍न होना चाहिये | वेदास्द के उपदेश को समशो ।, विवाह को अपने उक्तष का एक साधन बनाओ, तब वह बड़ा सहायक होजाता है। ठोकर लगाने वाला ढेला ज़ीने का वा पार टपने का पत्थर बन खाता है! जय विवाद काम-विकार की शुलामी बनजाता है, तंज सुम्दासी दर নাহ জী ছি मे युलामी बढ़ती दै, और तुम




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