माहबंधों | Mahabandhovol-3-1954

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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उकक्‍कस्लसत्थाणबंधसण्णियासपरूचणा ५ सिया व॑र सिया अबं० | यदि बं० तं त° । अथिर-ग्रसुभ-ग्रनस० सिया बं° सिया अवं । यदि व° णिय० अणु दुभागरणं वंधदि । एवं देवाणुपु° । ६. षईंदियस्स उक°हिदिर्॑धं ° तिरिक्छग ०-ओरालि °-तेना ०-क ०-हु'डसं वणणए० ४-तिगिक्खाणु °-अगु° ४-थावर-वादर्‌--पजलत्त-पत्ते०-अथिरादिपंच०-णिमि° णिय० व° । तं त° । आदाउजो° सिया वं० सिया আর্থ । यदि वं० | तंतु०। एवं आदाव-थावर ० | १०, वीईंदि* उक्‌ °दह्िदिवं तिरिक्छग०-ओरालि०-तेना -क ०-हु'ड ०- ओरालि«अंगो ०--असंपत्त ०-वण्ण ० ४-तिरिक्खाण़ु ०-अगु ०-उप ०-तस ०-बादर-पत्ते ०- अधिरादिपंच ०-णिमि० शिय० बं० । अएु० संखेज्जदिभागूणं बंधदि। पर«- उस्सा ०-उज्जो ०-अप्पसत्थ ०-पज्त ०-अपज्त॒ ०-दुस्सर सिया बं० | নী নং | श्रसंख्यातवां भाग न्यूनतक बाँधता है। स्थिर, शुभ और यशःकीति इन प्रकृतियोंका कदाचित्‌ बन्धक होता है ओर कदायचित्‌ अबन्धक होता है । यदि वनन्‍्धक होता है तो वह उत्कृष्ट स्थितिका भी वन्‍्धक होता है ओर अलु॒त्कष्ट स्थितिका भी बन्धक होता है। यदि श्रयुत्छट स्थितिका बन्धक होता है तो नियमसे उत्कृशसे अद्ुत्क८ एकसमय न्यूनसे लेकर पत्यका असंख्यातवाँ भाग न्यूनतक बाँघता है। अस्थिर, अशुभ ओर अयशः- कीर्ति इन प्रकृतियोंका कदाचित्‌ बन्धक होता है श्रोर कद!चित्‌ अबन्धक होता है । यदि वन्धक होता है तो नियमसे अलुत्कृष्ट दो भाग न्यूनकां बन्धक होता है। इसी प्रकार देवगत्यानुपूर्वीके आभ्रयसे सन्निकप जानना चाहिए। ९, एकेन्द्रिय जातिकी उत्कृष्ट स्थितिका बन्ध करनेवाला जीव तिय॑श्वगति, ओदारिक शुगर, तेजस शरीर, कार्मणशरीर, हुण्डसंस्थान, वर्ण्चतुष्क, तिर्य॑श्वगत्याजुपूर्ची, ग्रगुरुलघुचतुप्क, स्थावर, वाद्र, पर्याप्त, प्रत्येक शरीर, अस्थिर आादि पांच ओर निर्माण इन प्रकृतियोंका नियमसे बन्धक होता है। किन्तु वह उत्डएट स्थितिका भी चन्धक होता है श्रोर श्रनुल्कृष्ट स्थितिका भी बन्धक होता है । यदि अ्रनुत्कष्ट स्थितिका बन्धक होता है तो चह नियमसे उत्कृए्टसे अनुत्कश एक समय न्यूनसे लेकर पल्यका असंख्यातवाँ भाग न्‍्यून तक बाँधता है। आतप और उद्योत इन प्रकृतियोंका कदाचित्‌ बन्धक होता है ओर कदायित्‌ अबन्धक होता है। यदि बन्धक होता है तो वह তলা स्थितिका भी बन्धक होता है ओर अलुत्कृष्ट स्थितिका भी बन्धक होता है। यदि अनु- त्कृष्ट स्थितिका वन्धक होता है तो वह नियमसे उत्हृष्टसे अनुत्कृष्ट एक समय न्यूनसे लेकर पर्य॒का ग्रसंख्यातवां भाग्‌ न्यृनतक बाँघता है। इसी प्रकार आतप ओर स्थावर प्रर तियोंके आश्रयसे सन्निकर्प जानना चाहिए । १०, ह्वीन्द्रिय जातिकी उत्कृष्ट स्थितिका बन्ध करनेवाला जीव तिय॑श्षगति, ओदारिफक शरीर, तेजस शरीर, कार्मण शरीर, हुण्डसंस्थान, औदारिक आइ्लोपाड़, अ्रसम्प्राप्तास॒पाटिका संहनन, वर्गचतुप्क, तिय॑श्वगत्यानुपूर्वों, अगुरुलघु, उपधात, चरस, बादर, प्रत्येक, ्रस्थिर आदि पाँच ओर निर्माण इन प्रकृतियोंका नियमसे बन्धक होता है। जो अनुत्कृष् संख्यातवा भाग हीन स्थितिका बन्धक होता है । परघात, डच्छूस, उद्योत, श्रप्रशस्तवि- हायोगति, पर्याप्त, अ्रपर्यात्त और दुःखर, इन प्रकृतियोंका कदाचित्‌ बन्धक होता है ओर कदाचित्‌ अबन्धक होता है। किन्तु यदि बन्धक होता है तो उत्क्ए स्थितिका भी बन्धक होता है ओर अनुत्कृष्ट स्थितिका भी बन्धक होता है। यदि अनुत्कृष्ट स्थितिका १. मूलगप्रत्तो पज० दुसुमर ्रपज ० साधार ० सिया इति पाठः । २. मूलप्रतौतं तु गा० द° सिया




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