भारत का प्रथम स्वातंत्र्य संग्राम | Bharat Ka Pratham Swatantarta Sangram
श्रेणी : इतिहास / History
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
5.72 MB
कुल पष्ठ :
280
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)देते हैं। इससे यह बात भी साफ हो जाती है कि यदि एक भी विनाशकारी
युद्ध आ जाता है तो सदियों के लिए देश को वह किस प्रकार जन-विह्वीन बना
देता है और उसकी पूरी सम्यता का अन्त कर देता है ।
अंग्रेजों ने पूर्वी भारत में अपने पूर्वाधिकारियों से वित्त और युद्ध के विभागों
को हो ले लिया है, किन्तु सावंजनिक निर्माण विभाग की ओर उन्होंने पूर्ण
उपेक्षा दिललायी है । फलस्वरूप, एक ऐसी खेती, जिसे स्वतंत्र व्यवसाय और
निर्वाध व्यापार” के मुक्त व्यापार वाले ब्रिटिश सिद्धान्त के आधार पर नहीं
चलाया जा सकता था, पतन के गढें में पहुच गयी है । परन्तु एशियाई साम्राज्यों
में हम इस बात को देखने के काफी आदी हैं कि एक सरकार के मातह्त खेती
की हालत बिगड़ती है और किसी दूसरी सरकार के मातहत वह फिर सुघर
जाती है । वहां पर फसलें अच्छो या बुरी सरकारों के अनुसार होती है जैसे
कियोरप में वे अच्छे या बुरे मौसम पर निर्भर करती हैं । इस तरह, उत्पीड़न
और लेती की उपेक्षा बुरी बातें होते हुए भी ऐसी नहीं थी कि उन्हें भारतीय
समाज को ब्रिटिश हस्तक्षेपकारियों द्वारा पहुंचायी गयी अंतिम चोट मान लिया
जाता--यदिं, उनके साथ-साथ, एक और भी बिल्कुल ही भिन्न महत्व की बात
मे जुड़ी होती, एक ऐसी बात जो पूरी एशियाई दुनिया के इतिहास में एक
बिल्कुल नयी चीज़ थी । - लेकिन, भारत के अतीत का राजनीतिक स्वरूप
चाहे कितना ही अधिक बदलता हुआ दिखलायी देता हो, प्राचीन से प्राघीत
काल से लेकर १९ वी. दताब्दी के पहले दयाक तक उसकी सामाजिक स्थिति
अपरिवत्तित्त ही बनी रही है। हियमित रूप से असख्य वततनेवालों और बुनकरों
को पैदा करने वाला करघा और चर्खा ही उस समाज के ढांचे की घुरो थे ।
अनादि काल से योरप भारतीय कारीगरों के हाथ के बनाये हुए बढ़िया कपड़ों
को मंगाता था और उनके बदले में अपनी सूल्यवान धातुओं को भेजता था;
और, इस प्रकार, वहां के सुनार के लिए वह कच्चा माल जुटा देता था ।
सुनार भारतीय समाज का एक आवश्यक अंग होता है। बनाव-शंगार के
प्रति भारत का मोह इतना प्रबल है कि उसके मिम्नतम वर्ग तक के लौग,
वे लोग जो लगभग नंगे बदन घूमते हैं, आम तौर पर कानों में सोने की एक
जोड़ी बालिया और गले में किसी न किसी तरह का सोने का एक जेदर अवप्य
पहने रहते हैं। हाथो और पंरों की उंगदियों में छल्ले पहनने का भी आम
रिवाज है । मोरतें तथा बच्चे भी अक्सर सोने या चांदी के भारी-भारी कड़े
हाथों और पैरो में पहनते है और घरों में सोने या चांदी की देवमूतियां पायी
जाती हैं । पघ्रिटिश आक्रमणकारी ने आकर भारतीय को तोड़ दिया
और चसें को नष्ट कर डाला । इंगलेड ने भारतीय कपड़े को योरप के वाजार
से खदेड़ना धुरू किया; फिर उसने हिन्दुस्तान में भूत भेजना शुरू किया; और
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