कसाय पाहुदम | Kasaya Pahudam

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Kasaya Pahudam by महेंद्र कुमार - Mahendra Kumar

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( ११ ) हमें जा प्रेसकापी प्राप्त हुई है वह अमरावतीकी प्रतिके आधारसे की गई हे । आराकी प्रति जैन- सिद्धान्त भवन आराके अधिकारमे हे। ओर वह हमें पं० क० भुजबलिजी शास्त्री अ्रभ्यक्ष जेन- सिद्धान्त भवन आराफा कृपास प्राप्त हुई है । सशाधनक समय यह प्रांत हम लासाक सामने थी । टनके अतिरिक्त पीछेस श्री सत्तकसुधानरद्धिणी दि० जन विद्यालयकी प्रति भी हमे प्राप्त हा गई थी, इसलिय संशावनमें थाड़ा बहुत उसका भी उपयाग दा गया द| तथा न्यायाचार्य पं० महेनद्र- कुमार जी कुछ शंकाम्पद स्थल दिल्लीक धमपुरके नय मन्दिरजीकी प्रतिस भी मिला लाय थ । संशोधनकी विशेषताएँ- (५) इस प्रकार इन उपयुक्त प्रतियांके आधारसे प्रस्तुत भागक सम्पादनका काय हुआ है | य सब प्रतियां लगभग ३५ वषसे ही सार भारतमे फली है इसलिय मूल प्रतिक समान इन चकरा बहभाग प्रायः णद्ध । फिर भा इनमें जा कुछ गड़बड़ हुइ है वह बड़े गुटालमे डाल देती है । बात यह # कि नाइपन्रकी प्रतिम कुछ स्थल त्रटित है ओर उसकी सीधी नकल सहारनपुरकी प्रतिका भा यहां हाल हे । पर उसके बाद सहारनपुरको प्रतिके आधारस जा शेप प्रतियां लिखी गई ८ उन सबमे व स्थल भर हुए पाये जात है । अमरावती, आरा, सागर ओर दहली सभा प्रतियांका यहाँ हाल 6 । जबतक हमार सामने मुडविद्रो ओर सहारनपुरको प्रतियाके आदर्श पाठ उपस्थित नहीं थ वच्र तक हम लाग बड़ों असमंजसताका अनुभव फरन रहे । व भरे हुए पाट वदन आर अशुद्ध हाोत ভুত भो मृलम थ इसलिये उन्हें न छाड़ हां। सकने थ आर असज्ञत हानके कारण न जाड़ ही सकत थ । अन्तम हम लागोंका सुवुद्धि सूकी ओर तदनुसार सहारनपुर आर मृडविद्वीकी प्रतियांके मिल्ानका प्रयत्न किया गया ओर तब यह पाल खुली कि यह तो किसी भाइकी करामात हैं ऋषियांक वाक्य नहीं | पाठक इन भर हुए पाठांका धड़ा नमूना दस्बे ( ४ ) ইডি উন ক ০ এক আন্ত के. के. ७. कक के का डक हु च्छुदवादीया 07 (লা০, स^) ससार दु चमखं न्‌ ववि उचद्रदुवादीया | (च, स्रा) ভিন পর) ০2512 ভা [এ ल = उ ५ ` य लक्खगा নস । ১ ( ता, स 7) ) “उपज्जात वियति ये भावा जियमगण णिच्छुयण॒यस्स | णयमविणट्र दव्व दव्बट्रिय लवखण एयं |” (अआ०, आ०) ट्स प्रकार आर भी बहुतस पाठ ह जा मृडविद्री ओर सहारनपुरकी प्रतियांस त्रटित है. पर वे दूसरी प्रतियांमे रच्छानुसार भर दिये गय हैं । यह कारामात कब ओर किसने की यह पहली अभी ता नहीं सुलूझी है । सभव है भ्रविष्यम इस पर कुछ प्रकाश डाला जा सके | इन त्रुटित पाठांके हम लागांन तीन भाग कर लिए थ (१) जो त्रुटित पाठ उद्धृत वाक्य हे ओर वे अन्य ग्रन्धांस पाय ज्ञात हैं. उनकी पूर्ति उन अन्थाके आधारस कर दी गई है। जैसे नमूनाक तार पर जा दा त्रटित पाठ ऊपर दिय है व सम्मतितक ग्रन्थकी गाथाएँ है । अतः वहाँस उनकी पूर्ति कर दी गई हाँ। (२) जा त्रटित पाठ प्रायः छाटे थे, (-७ अक्षरांस ही जिनकी पूर्ति हा सकता थी उनकी पूति भी विषय ओर घवला जीके आधारसे कर दी गई हे | पर जो त्रटित पाठ बहुत बड़ है आंर शब्दांकी हृष्टिस जिनकी पृतिक लिए काई अन्य स्रोत उपलब्ध नहीं हुआ (१) देखो म॒द्रित प्रति पृ० २४९ ओर उसका टिप्पण नं० २१॥ (२) देखो मुद्रित प्रति पु० २४८ भोौर उसका टिप्पण न० १॥




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