प्रकृति और हिन्दी काव्य | Parkriti Aur Hindi Kavya

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Book Image : प्रकृति और हिन्दी काव्य  - Parkriti Aur Hindi Kavya

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about महादेवी - Mahadevi

Add Infomation AboutMahadevi

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
५ आछख ६ १--प्रखूत कार्य को आरम्म करने कपू हमारे सामने प्रकृति ओर काब्य' का विपय था | प्रचलित अर्थ भे इसे वाष्य में प्रकृति- चित्रण के रूप में. समझा जाता हे, पर हमारे सामने यह विपय इस रूप में नहीं रद्दा है । जब हमको हिन्दी साद्त्य के भक्ति तथा रीति कालों को लेकर इस विपय पर खोज करने का अवसर निला, उस समय भी विषय को प्रचलित अर्थ मे नहीं स्वीकार किया गया है। हमने विपय को कास्य में प्रकृति संवन्‍्धी अभिव्यक्ति तक ही सीमिद गहीं रखा दै। काव्य को कवि से अलम नहीं किया जा सकता, और कवि के साथ उश्की समस्त परिस्थिति को स्वीकार करना दोगा । यद्दी कारण दे कि यहाँ प्रकृति और काव्य का संवन्ध कवि की अनुभूति _तथा, अभिव्यक्ति-दोनों फे...ड्िचार से समझने छा प्रयाठ किया गया है, साम दी काप्य की रसात्मक प्रसाव- शीलता को भी इष्टि में হকজা गया है। व्रिपय फी इस विस्तृत ड्रैमा में प्रकृति श्रौर काव्य संवन्दी अनेक प्रश्न सन्निदित दो गए: हैं । प्रस्तुत कार्य में केवल 'ऐसा है? से सुस्तुष्ट न रहकर, 'क्यों है !? और कैसे हे! का उत्तर देने का प्रयास किया गया है। कास्य के विश्तार से मदद स्पट हे कि इस विषय से संबन्धित इन तीनों प्रश्नों के आधार पर आगे चढ़ा गया है। सम्म३ दै यह प्रयोग नवीन होने से प्रचलित के अनुरूष न छगठा हो; और धरहि तया कव्य कीदृ से युग की व्यापक प3-मृमि और श्राध्यात्मिक साधना तंवन्धी विस्तृत विवेचनाएं विचित्र लगठी हों। परन्द विचार करने से यही ठचित लगता कि विपय की यथार्य॑ विवेचना वैज्ञानिक रीति से इन ठीनों ही प्रश्नों को लेकर की जा सकती ই। बिपय प्रवेश




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now