महाबन्धो ४ | Mahabandho Vol-4

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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विषय-परिचय यह महाबन्धका अन्तिम भाग प्रदेशबन्ध है। इसमें प्रत्येक समयमें बन्धको प्राप्त होनेवाले मूल और उत्तर कमके प्रदेशोंके आश्रयसे मूल प्रकृतिप्रदेशबन्ध और उत्तरप्रकृतिप्रदेशबन्धका विचार किया गया है। किन्तु दोनोके विचार करनेका क्रम एक होनेसे यहाँ एक साथ ग्रन्थक्रे हादकों स्पष्ट किया जाता है। भागाभागसमुदाहार--मूलमें सर्व प्रथम आठ कर्मोंका बन्ध होते समय किस कमको कमपरमाणुओंका कितना भाग मिलता है इसका विचार करते इए बतलाया गया है कि आयुकमंको सबसे स्तोक भाग मिखता है । उससे नामकमं और गोत्रकमंको विशेष अधिक भाग मिलता है। उससे ज्ञानावरण, दशनावरण ओौरे सेन्तराय कमेको विशेष अधिक भाग मिरुता है | उससे मोहनीय कमंको विशेष अधिक भाग मिरत्ता हे । तथा उससे वेदनीय कर्मको विशेष अधिक भाग मिलता है। इसका कारण क्या है इस बातका निर्देश करते हुए वहाँ लिखा है कि आयु कर्मका स्थितिबन्ध स्वर्प है, इसलिए उसे सबसे थोड़ा भाग मिलता है। वेदनीयके सिवा शेष कर्मोमें जिसकी स्थिति दीघ है उसे बहुत भाग मिलता है और वेदनीयके विपयमें यह लिखा है कि यदि वेदनीय न हो तो सब कर्म जीवको सुख और दुःख उत्पन्न करनेमें सम थ नहीं हैं, इसलिए उसे सबसे अविक भाग मिलता है। श्वेताम्बर कम प्रकृति की चूर्णिमें सकारण बटवारेका यहीं क्रम दिखलाया गया है। सात प्रकारके ओर छुह प्रकारके कर्मोंका बन्ध होते समय भी बटवारेका यही क्रम जानना चाहिए । मात्र यहाँ जिस कमंका बन्ध नहीं होता उसे भाग नहीं मिलता है इतनी विशेषता है । उत्तर प्रकृतियोंमें कर्म परमाणुओंका बटवारा करते समय बतछाया है कि आठ प्रकारके कर्मांका बन्ध होते समय जो ज्ञानावरणीय कमको एक भाग मिलता है वह चार भागोंमें विभक्त होकर आभिनि- बोधिकज्ञानावरण, श्रुतज्ञानावरण, अवधिज्ञानावरण और सनःपर्ययज्ञानावरण इन चार कर्मक प्राप्त होता है। यहाँ जो सवंधाति प्रदेशाग्र है वह भी इसी क्रमसे बट जाता है। केवलज्ञानावरण सबंधाति प्रकृति है, इसलिण उसे केवल सवंधाति द्रव्य ही मिलता है किन्तु देशघाति प्रङृतिर्योको दोनों प्रकारका दब्य मिलता है। दशनावरणमें तीन देशधाति और छुह सबंधाति प्रकृतियाँ हैं । इसलिए देशघाति द्वव्य देशघातिर्योको ओर सवंघाति द्रव्य देशघाति ओर सवंघाति दोनों प्रकारकी प्रकृतिर्योको मिरता हे । यदीं जिनका बन्ध होता है उनमें यह बटवारा होता है! वेदनीय कम॑मं जब जिसका बन्ध होता हि तवर उसे ही समस्त भाग मिलता हे । मोहनीय क्मको जो देशघाति भाग मिरुता हे उसके दो भाग हो जाते है-- एक कपायवेद नीयका ओर दूसरा नोकषायवेदनीयका । इनमेसे कषायवेदनीयका दव्य चार भागे अर नोकपायवेदनीयका द्भ्य बन्धके अनुसार पाँच भागांमें विभक्त हो जाता है । तथा मोहनीय कमंको जो सवंघाति द्रव्य मिरता है उन्मेसे एक भाग चार संज्वलन कषायोंमें और दूसरा एक भाग बारह कपायोंमें ओर मिथ्याव्वमें विभक्त हो जाता हे । अपने बन्ध समयमे आयु कमको जो भाग मिलता है वह जिस आयुका बन्ध होता है उसीका होता है। नामकमंको जो भाग मिलता है उसके बन्धके अनुसार गति, जाति, शरीर आदि रूपसे अरूग अलग विभाग हयो जते है 1 गोत्र कममें जिसका बन्ध होता है उसे ही समान भाग मिता है । तथा अन्तराय कमंको मिटनेवाला दव्य पौँच भागों बट जाता है । इस प्रकार




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