अगम महल मतवारा | Agam Mahal Matwara

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Agam Mahal Matwara by महोपाध्याय माणकचन्द रामपुरिया - Mahopadhyay Manakchand Rampuriya

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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ऐसे में ही एक अकेला- संत धरा पर आया; उसने जग की नई राह पर- नव आलोक जगाया। वह कबीर जो परम साधु था- ज्योति जगाने वालाः; भटक रहे प्राणी को नूतन- राह दिखाने वाला। जिसके सत्य वचन के आगे- जन-जन थे झुक जाते; दिनमणि भी रथ के सँग पथ पर- अनायास रूक जाते। उसे प्रणाम करें हम पहले- सादर शीश झुकाकर; नश्वर जग में गीत अनश्वर- मुक्त हृदय से गा कर।। अगम महल मतवारा ४: 5




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