प्रामाणिक हिन्दी कोश | Pramaniak Hindi Koush
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
48 MB
कुल पष्ठ :
1266
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)११
अंश से इसका कोई सम्दस्ध नहीं है । एसी भकार यदि 'चुबमा' झ० के आगे दे०
चूना सिखा है, सो चूना! का वही अंश देखना चाहिए, जिसके आगे श्र»
सिखा है, उसके पुं७ या संज्ञावाक्षे झर्थ से उसका कोई सम्वन्द नहीं है
हिन्दी में जो शब्द ग्रशयव् रुप अथवा झशदध अथ में चक्ष पढ़े हैं, उनकी
अशशुता का निर्देश उनके गो कोटक से कर धिका भया हे)
रः और व, के नतर का चिरोष स्प से ध्यान रखा गया है । संस्कृत के जो
शन्दु “बः में न मिद्धें, उ.हैं थ' में और जो 'व' में स भिज्ञ, उ.हे “व! से हटना चाहिए ।
३. प्राचीन कतिया ने खव, द-क', शसः, श्वत , यजः भादि मे विशेष
अग्तर नहीं माना है । बहुत-से कवि (खारा, को वारः , क्षेत्र' को छेतर, “नद्घ्रः का
नकत शिवः कः (सिव भौर यहु को जबु' किख गये ९ । হুর আবন্স কৰা? লীল
जो बहुत भ्रधिक प्रचक्षित हैं, वे तो दस कोश से दे दिये गये हैं, पर कम भचल्ित रूप
छोड़ दिये गये हैं। शब्द हँढ़ते समय इस तस्व का भी ध्यान रखना चाहिए।
७. इस कोश सें शब्दों का क्रम तो उन्हों सिद्धान्सों के अनुसार रखा गया है,
जो शब्द-सागर की रचमा के समय स्थिर हुए थे। पर शब्दू-सारर में कह्टों कहीं
इष्टि-दोष से उन सिद्धूूएतों का अतिक्रमण भी हुआ है। इस प्रकार की भूल्ते जहां
' जहां सेरे ध्यान में आई हैं, बहों वढा वे ठीक कर दी गई हैं। इस कोश से इस
क्षेत्र में दूसरे कोशों से जो अन्तर दिखाई दे, उसके कारण पाठकों को ऋम नहीं
होगा चाहिए |
(८ ) ऑगरेजी हिन्दी-शब्दावर्खा में श्रेंगरेजी शब्दों के आगे जो हिन्दी पद्मांय
दिये गये हैं, <नरमे से बहुतेरे बाद सें मिल्ले या ध्यान में आये हैं; ओर फलत: थे
परिशिष्ट में दिये गये हैं। ऐसे अधिकतर शब्दों के आगे परिशिष्ट का संकेत कर दिया
गया है । अतः ऐसे शब्द मूल शब्द-काश में नहों, वक्िक परिशिष्ट में देखने चाहिएँ ।
छाप को भूले
मुझे इस बात का बदुत खद है कि इस कोश में छापे की कुछ ऐसी भहड। मूलं
हो शई है जो अक्षम्य कही जा सकती हैं। जैसे-( क ) अनुपस्थित ( विशेषण ) मूक
से अनुपस्थिति, छप राया है; 'एक-निष्ठ' का 'एकानिप्ठ' हो गया हे । 'हवधि' की
जगह अद्यावधि चुप गाया र! अनजीवीः अपने ठीक स्थानपर तो हे ही, पर
शह 'अनकपाः भौर (अनकरया, के श्रीच में भी आा गया है । खुल शब्दों कें रूप
खरबन्धी मियमों के अज़सार अप्रतियंध' हर 'अन्ंब' होना चादिएुं। पर इनके
स्थाम पर भूजल से अप्रतिय-छ' और 'अमजम्ब' रूप छुप गये हैं। 'दासम! के
आगे तो देब 'डासण! है, पर 'डासन' अपने श्यान पर नहीं हे, अतः वह परिशिष्ठ सें
दिया शया है । 'अपशधत' सें दी झपसरक?' के दो झथ झा गये हैं, ओर अपसरः
अपने श्थाम पर : आया হী भहीं। श्रत: बह भी परिशिष्ट में दे दिया गयाहें।
'दशमक्व' का दूसर! अर्थ वास्तव में (दशमिक प्रखाक्ती' में जाना चाहिए था,
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