पंजाब की कहानियाँ | Punjab Ki Kahaniya
श्रेणी : कहानियाँ / Stories
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लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
617.79 MB
कुल पष्ठ :
256
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)द्ण्ड
हुई । तारू भी दौड़ा । थोड़ी ही दौड़ में तारू ने उसे जा दत्रोचा श्रौर
उसकी कलाई को मजबूती से पकड़ कर त्रोला--“क्यों री जीता ! हम
से यदद चालाकी ! रोज तू ही शाक चुराकर ले जाती थी न! श्राज मैं
भी इसी ताक में त्रैठा था ।”” दी
जीतो रोती हुई शरीर उसकी कड़ी पकड़ से हाथ छुड़ाने की चेश
करती हुई बोली--“मैं तो तेरे खेत में पहिले कभी नहीं श्राई...छोड़
मुझे 17?
“कमी नहीं श्राई थी...?” तारू दॉत पीसते हुये त्राला--“चल श्राज
मैं तुके चखाता हूँ मजा ।””
तारू उसे घसीटता हुआ कच्चे मकान की श्रोर ले गया श्र दर-
बाजा खोल कर उसे जोर से दकेल दिया | वह मैंस के ऊपर
गिरने से वाल-वाल बची । उसकी एक चूड़ी भी टूट गई । चूड़ी को टूटते
देखकर उससे सहन न हो सका । चिल्ला कर त्रोली--“तूने मेरी चूड़ी
तोड़ दी; मैंने कैसे चाव से मेले में ली थी |” उसका स्वर भर्रा गया
और वह टूटी हुई चूड़ियों को देख-देख कर रोने लगी ।
श्र तारू नम पड़ गया । उसे दुख भो । सहसा उसकी दृष्टि
जीतों की कलाई पर पड़ी जिसमें से चूड़ी का टुकड़ा चुभ जाने से खून
बह रहा था । वह एकदम गे बढ़ा--“श्रोहो ! जीतो, तुम्हारी कलाई
से खून बह रहा है, लात्रो....””
“हट ।” जीतो ने दो कदम पीछे हट कर कहा--“बदमाश...
कलमुंदा....मुसटंडा . ..””
तारू गालियाँ खाकर चुप हो गया । उसे यह पता नहीं था कि बात
का बतंगड़ बन जायगा | वह तो क्षण भर के लिये जीतो को परेशान
करना चाहता था, क्योंकि उसे दिक करने में उसे श्रानन्द श्राता था ।
उसका यह उद्देश्य कभी न था कि जीतो की कोई हानि हो या वह उसे
कोई शारीरिक कष्ट पहुँचाये । ४
[नह]
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