हिंदी महाभारत | Hindi - Mahabharat

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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द्रोशपूर्व सर... लि हे द्रोयपव | ः २२३ कुडकनजाकनालकष्ननणाानाााणााााए हुए. थे ।. पांच्चालदेशीय प्रंसिद्धं वीर जनमेजय ऐसे; रथ पर बैठकर युंदभूमि में चले जिसमें ५० 'सरसे[ के फूल के से रज़वाले. वढ़िया घोड़े जुते हुए .थे | पाव्याल्य न्ञाम के राजा के रथ में सुबर्ग- मालाधारी वेग्रशाल्ली उ्डद के छल के 'रखूवाले घोड़े लगे हुए थे । उनकी पीठ दही के रह की थी बार चेहर का रज़ विचित्र था । राजा दण्डघार के रथ में पद्मकेसर के रह के, सुन्दर सिर- वाले, श्वेत-गौर पृष्ठ, शूर घोड़े लगे हुए थे.। राजा व्याघ्रदत्त के रथ में अरुण-मलिनवर्स-शरीर धार मूसे के रज की पीठवाले घोड़े जुते हुए थे। ब्रे घोड़े जाने के लिए वढ़ी,तेज़ी दिखा रहे थे। विचित्र, मालाओं से भूपित, काले मरतकवाले चितकवरे , घोड़े. पुरुपसिंह पाभ्वालदेशीय सुधन्वा के रथ में जुते हुए थे । अदुभुवदरशन, विचित्रवर्ण, वीरबहूट़ी के रह के घोड़े चित्रा- युध्न राजा के रथ में . जुते, हुए: थे। कोशलाधिपति के. पुत्र सुक्तत्र के रथ में विचित्नवर्ण, रँचे, सुनरमाला-भूपित, चकवे के पेटे के से रज़वाले सुन्दर घोड़े जुते हुए थे। सत्यध्रृति च्षेमि भी सुवरणमाल्यधारी, बड़े, घ्ौर ऊँचे, शुभदर्शन, सधे हुए करे घोड़ों .से युक्त रथ में वैठक्र आ्रागे बढ़े । , महावीर शुक्ल की ध्वजा, कन्तच, धनुष और रथ के घोडे श्रादि सेव सामान सफेद ही था। रुद्र के समान तेजस्वी समुद्रसेन के, पुत्र चन्द्रसेन के 'रथ के घोड़े चन्द्रमा के संमान सफेद थे: 1. शिवि, के पुत्र चित्ररथ के रथ के घोड़ें. नीलकमल के रख के, सुवर्णभूषित श्रौर ६० विचित्र मालाओं से झलझुत थे ।. : सिश्रश्याम वण श्ौर लाल-सफेद रोमें। से शासित श्रेष्ठ घोड़ों से युक्त रथ पर वैठकर युद्धप्रिय महायोद्धा रथसेन थुद्ध करने चले। पट्चचर नामक असुरों को 'मारतेवाले श्रौर सब मनुष्यों से ब्ऱकर शूर कहानेवाले -समुद्राधिप के रथ में होते के रह के घोड़े जुते थे । विचित्र माला, क्षच, आ्रायुध श्र ध्वजा. से अलझूत चित्रायुध के रथ में ढाक के फूल के रज के घोड़े जुते हुए थे। महाराज नीत़ं की ध्वजा, कवच, धनुप, रथ के घोड़े आदि सब सामान नीले रद का था । चित्र राजा के प्रोड़े, श्वज़ा, पताका, रथ,. घलुप आदि सब सामान विचिन्रवर्ण नाना रूप रज्नचिह्वों से विचित्र था । याचमान के. पुत्र हेमवण 'के रथ के श्रेष्ठ घोड़े पद्म कें रह के थे। .दण्डकेतु के रथ के घोडे. युद्धसमर्थ, सुडौल, शर-दण्ड,के समान उच्व्वल- गैर, पीठवाले, सफदर अ्रण्डकाशवाले .श्रौर मुर्गी के झ्रण्डेकी सी.आाभावाले थे। श्रीकृष्ण के हाथों युद्ध में :पिता की. सत्यु होने पर, पाण्ड्यदेश-नरेश .के सहायक मित्रों के भाग जाने श्रौर नगर छुट जाने पर जिन्होंने भीष्म, द्रोण श्रौर परशुराम से अखशिक्षा प्राप्त करके अस्त्रविद्या, में रक्मी, कैश, झ्रजुन श्रौर श्रीकृष्ण के समान होकर द्वारंकापुरी को नष्ट-भ्रष्ट करने श्रोर प्रथ्वी- मण्डल 'को जीतने का इरादा किया था; किन्तु फिर हितचिन्तंक सुद्ददों के समकाने पर श्रीकृष्ण ४१ से वैर.श्ौर बदला लेने का: विचार छोड़े दिया. श्रौर इस.समय जो , उत्तमंता के साथे अपने राज्य का शासन कर: रहे हैं, व्रे पाण्ड्यनरेश साग़रध्वज वैड्रयंजालमण्डित चन्द्रकिस्श के रज़ कं घोड़ों से शोमित रथ ,प्रर बैठकर, अपने वाहुवल से दिल दंढ़ धडुष, चढ़ाकर द्रोखाचा्य के सामने २७६




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