धूप के पखेरू | Dhup Ke Parviru
श्रेणी : काव्य / Poetry
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
1 MB
कुल पष्ठ :
117
श्रेणी :
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पुरुषोत्तम तिवारी - Purushottam Tiwari
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शिवरतन थानवी - Shivratan Thanavi
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)गजल [अकाल पर]
श्रंगरा रही है रेत को ज्वर की जलन,
धुल गये, श्राकाणके, वागी हिरन ॥
रिक्त आमाशय की कोरी भित्ति पर,
भूख ने लिखा, प्रलय का भावकथन ।।
मिरवंमिया वादे त्तो सहते आये हैं,
दिस तरह सह लें, धरा का वांभपत ॥
छाटता हूं दिन, औंवी उपेक्षित हांडियाँ
গে গু रत, विप के গালমন |
कांड | ने मिलते-पार्थ के बेजोड शर
के ने मिल्मी भीष्म देही की तपत ॥
দুগ পানর मूल के दृष्टि में उदते रहे
গা दुल्दस ॥
दाता शरीर भी
का कितने ।।
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