शारदा विधान मीमांसा | Sharda Vidhan Mimansa
श्रेणी : हिंदी / Hindi
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
6 MB
कुल पष्ठ :
94
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)( ठ )
अर्थात् (--सोमादि देवताओं से दी हुई स्री से पति विवाह करे,
अपलो इच्छा से विवाह न करे । ( अर्थात बिना देवताओं के छोड़ें
निवाह न करे ) इसलिये वेद में फिर भी लिखा है कि, अग्नि देवता
भग करके मनुष्य को कन्या देते हे
सोमो दददुगन्धर्वाय गन्धो ददद्शनये रयिश्च
पुर्रोश्चादादग्मिनद्यमथो इमाम् ४
(क्रूगू मण्डल १० सूक्तं ८८ म. ७ म, ४१,
अर्थात्त ।--सोमने भोग करके गन्धवं को , गन्धर्घने भोग करफे
अग्नि को दिया तथा अग्नि भोग करके इस कन्या को तथा धन ओर
पुत्र # मुझे दें। ( ऐसा मनुष्य कहता है । )
জনি स्मति में भी छिखों हे कि,--
“पूष' स्त्रियः सरेंभु क्ताः सोम गन्धर्ष वन्हिमिः ।
भुंज्यन्ते मानुषे: पश्चान्नता दुष्यन्ति कहिचित् ॥”
अर्थात् |---प्रथम स्त्रियों से सोम, गन्धर्व तथा अग्नि भोग करते
हैं, जिससे स्त्रियां कभो दूषित नहीं होतीं फिर इसके बाद मनुष्यों को
भोग करना चाहिये |
पर्वोक्त बचनानुसार कन्याओं के ভিঘাঁ ক लक्षण ( रोम इत्यादि )
उत्पन्न होने पर सोम, स्तनों के होने पर गन्धव तथा रजस्वला होने
घर दो वर्ष अग्नि भोग करते हैं, उसके बाद चौथी बार “तुरीयस्ते-
मनुष्यजाः के अनुसार कन्या का विवाह करके मनुष्यों को पति
७ मोट--तो जब पुत्र पंदा करनेकी योग्यता कन्याओम हो আম লয়
मनुष्य अपसे कन्या ले अर्थात् विवाह करे।
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