तत्त्व ज्ञान | Tatva Gyaan

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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तत्व-ज्ञान ; क्षेत्र, सम्बन्ध और विधि ७ ३. धमं ओर तत्वज्ञान बाहर की ओर देखो ।' अन्दर की ओर देखो।' ऊपर की ओर देखो।' प्राकृत विज्ञान का स्थायी आदेश है--बाहर की ओर देखो । बाहर की ओर हम देखते तो रहते ही है; विज्ञान कहता है कि जो कुछ देखे, उसे व्यवस्थित और गठित करें। मनोविज्ञान कहता है---अन्दर की ओर देखो । अन्दर की ओर भी हम देखते है, परन्तु अनियमित रूप में। मे नदी के किनारे बैठा, उसके विस्तार, उसकी लहरों, . उसके प्रवाह को देख रहा हूं । पीछे से एक मित्र आता है, और कहता है-- क्या कर्‌ रह हो ?” में कहता हू--नदी की स्थिति को देखता हूं, और सुहावने दृश्य का आनन्द ले रहा हूं ।! मित्र के आने से पहले में बाहर की ओर देख रहा था; उसके प्रश्न पूछने पर, मेने अन्दर की ओरु देखना आरम्भ किया, और देखा कि मन क्या कर रहा था। मनोविज्ञान भी कहता है कि जो कुछ मन की बाबत देखें, उसे व्यवस्थित करें। विज्ञान और मनोविज्ञान दोनों हमें तथ्यों की दुनिया में रखते हे; हम देखते हे कि वास्तविक स्थिति क्या है। जब हम ऊपर की ओर देखते है, तो हम तथ्य की दुनिया से ऊपर उठते हे, ओर आदर्शो की दुनिया में पहुंचते हे । अपने अल्प स्वत्व को विश्व का केन्द्र नहीं, अपितु इसका एक तुच्छ भाग समज्ञते हे । धर्म हमें ऐसा करने का आदेश देता है। धर्म और धर्म-विवेचन या परमार्थ-विद्या में भेद है। जो पुरुष कभी पृथिवी से १० फुट ऊंचा नहीं हुआ, वह यह बात जान सकता है कि हम चन्द्रमा तक केसे पहुंच सकते हू । जो पुरुष कभी तैरा नही, वह्‌ तैरने की विधि पर अच्छा निबन्ध लिख सकता है । इसी तरह, यह सम्भव है कि एक पुरूष परमार्थ-वि्यया मे निपुण हो, मौर उसके जीवन में धर्म का प्रभाव कुछ न हो। ु সম ঈলভ मन्‍्तव्य नही; जीवन का ढंग है। प्रकाश नही अपितु आत्म-सिद्धि इसका लक्ष्य है। इस लक्ष्य में मन्तव्य और कर्तव्य दोनों सम्मिलित हे। यहां हमें, इसके मन्तव्य भाग को सम्मुख रखकर, देखना हे कि धर्म और तत्व-ज्ञान के दृष्टिकोण में क्या भेद है। इस विषय में, जैसा हम आशा कर सकते हे, मतभेद है। फ्रांस के विचारक आगस्ट काम्ट का स्याल है कि अपने मानसिक विकास मे, मानव जाति तीन मंजिलों से गुजरी है। जिस जगत में हम जीवन व्यतीत करते हे, श्र




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