भारत की विभूतियाँ | Bharat Ki Vibhootiyan

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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भर कष्ण भगवान्‌ शब्द हम भारतीयों को बहुत ही प्रिय है । जिसे हम विभूति तथा विद्या से परिपूर्ण देखते हैं, उसी के सामने आदर से मस्तक फकुकाक्र भगवाम्‌ कौ उपाधि से विभूषित करते है। भारत की परम्परा जब तक जीवित है, तब तक भग- লালু का आदर होगा | ५ | इस शब्द का तात्पय केवल परमास्मासे दी नी है हमारे शा्रों ने भगवान! शब्द की बड़ी सुन्दर व्याख्या की है | ভিজা ই; ५ “पेश्वयस्य समगप्रश्य मूतानासगति मिम्‌ | वैन्ति विद्यामविद्यां च, स बाध्यो भगवानिति ॥% अगवान जिसको सम्पूर्ण ऐेश्बर्य श्राप्त हो, जो प्राशियों की गति तथा छागति को जानता हो, जो ज्ञान तथा अज्लञाम से, बिश्वा तथा अविया से परिचित हो, उसी को भगवान कहना चाहिये । पर, इस परिभाषा के अनुसार, इतना सम्पूण पुरुष मिलना असम्भव है। फिर भी, ऐसे ही सम्पूण भगवान श्रीकृष्ण थे जिनको हमं संसार के सबसे महान पुरुष तथा विष्णु के १६ अंश की पूर्ण - कला सित अवतार लेने बाली दैवी विभूति कहते हैं। श्रीकृष्ण के दी विषय में श्री मदूभागवत्‌ में लिखा है कि कमकांड-छप समस्त वेद, इन्द्र अश्चुति मी देवता मानकर गिलकी अधिम) का संस करते हैं, बपनिषद्‌ जद्रूप से जिसका प्रतिपाटय करते ई, साख्म शाश्र के पंडित जिसे निर णु, सिष्किय খল নান हैं, योगी জং १०९ ११




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