जैन साहित्य और इतिहास | Jain Sahitya Aur Itihas
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
36 MB
कुल पष्ठ :
638
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)दो शब्द
भारतीय इतिहासका अमीतक ,रा पूरा अनुसन्धान नहीं हुआ है। प्राचीन वेद-
कारुसे ठमाकर प्रायः भाधुनिक कारतकके राजनीतिक, धार्मिक, सामाजिक और साहि-
त्यिक इतिहासंके अनेक भाग अमी तक खंडित दामे ओर अन्धकारे ही षडे हु
हैं । जैन संस्कृतिके इतिहासकी तो और भी बड़ी दुर्दशा है । इसका तो प्रमुख
साहित्य भी अभीतक पूरा पूरा प्रकाशमें नहीं आया है। यहाँ। अनुसन्धानकोंकी
कठिनाई इस कारण ओर बढ़ जाती है कि स्वयं जेन समाजके भीतर एक ऐसा दक
विद्यमान है जे प्रकाशन ओर समारोचनका विरोधी है अतः यह कोई आश्व नहीं
जो दस कषत्रम कायं करनेबारूकी सेख्या अत्यस्य रही हो
जिन थोड़ेसे व्यक्तियोंने कठिनाइयोंकी परवाह न करके जैन साहित्य और इतिहासको,
प्रकाशमें लानेका प्रयल किया है उनमे श्रीयुक्त ५० नाथुरामजी प्रेमीका नाम अग्रगण्य
है। पंडितजीकी साहित्य-सवायं जैनत्व तक ही सीमित नहीं रहीं, हिन्दी साहित्यके
उद्धार ओर निर्माणमं भी उनका कार्यं अद्वितीय ओर चिरस्मरणीय है । किन्तु जैन
साहित्यमें तो उन्होंने एक नया युग री स्थापित कर दिया हे জাজ জী উন আহত
प्रकाशन और अनुसन्धानक कायै चरु रहा रै उसपर प्रमीजीके प्रयनोमी प्रत्यक्ष या
परोक्ष अभिट छाप र्गी हु दै नवीन खोजककि हिप प्रेमीजीके अनुसन्धान पथ-
प्रदश॑कका काम देते हैं ।
प्रेमीजीके खोजपुण और अत्यन्त महत्त्वशाक्षी ठेव प्रायः जैन पत्रिकाओं और स्फुट
पुस्तिकाओं तथा ग्रन्थोंकी भूमिकाओम समाविष्ट होनेसे सबके किए सदा सुरुम नहीं हैं
और कुछ तो अप्राप्य ही हे। गये हैं | बहुत काठसे मेरा प्रेमीजैसि आग्रह था कि वे अपने
इन ढेखोंकों एक जगह संग्रह कर दें तो नये खोजकोंको बड़ा सुभीता हो जाय । किन्तु
वृद्धावस्था, अस्वास्थ्य और अन्य चिन्ताओँके कारण वे इस ओर बहुत समय तक
प्रवत्त न हो सके । अत्यन्त हृषका विषय है कि अन्ततः प्रमीजीने इस कायेकी आव-
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