कवि रहस्य | Kavi Rahasy

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Kavi Rahasy by महामहोपाध्याय गंगानाथ झा - Mahamahopadhyaya Ganganath Jha

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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पुरुषनामोल्लेख के बिना किसी समय में ऐसा हुआ' ऐसे आख्यान को “पुराकलप' कहते हैं । २. आन्वीक्षिकी--तकश्षास्त्र । ३. वेदिक वाक्यों की १,००० न्यायों द्वारा विवेचना जिसमें की जाती है, उस शास्त्र को मीमांसा' वहते है । इसके दो भाग हँ--विधि- विवेचनी (जिसे हम लोग पूर्वमीमांसा! के नाम स जानते हु) ओरं व्रह्म निदर्शवों (जिस हम लोग ब्रह्ममीमांसा या वेदान्त' कहते है) । यद्यपि १,००० के लगभग न्याय वा अधिकरण केवल पूर्वमीमांसा में है । ४. स्मृतियां १८ हैं । इनमें वेद में कही हुई बातों का स्मरण है---अर्थात वैदिक उपदेशों को स्मरण करके ऋषियों ग्रन्थों को लिखा है--इसी से ये स्मृति कहलाते हैँ । इन्हीं दोनों (पौस्पय तथां अपौरुपय) आास्त्र' के १४ भेद हँं-- वेद, ६ वेदांग, पुराण, आन्वीक्षिकी, मीमांसा, स्मृति । इन्हीं को १४ 'विद्यास्थान' कटा है-- पुराणन्यायमीमांसाधमंशास्त्रांगमिश्रिताः । वेदाः स्थानानि विद्यानां धमंस्य च चतुदश ॥ (याज्ञवल्वय ) [इसमे न्याय = आन्वीक्षिकी; धस॑शास्त्र = स्मति| तीनों लोक के सभी विषय इन १४ विद्यास्थानों के अन्तर्गत हैं । शास्त्र' के सभी विद्यास्थानों का एक-मात्र आधार काव्य ₹-- जो वाइमय' का द्वितीय प्रभेद हैं । काव्य को ऐसा मानने का कारण यह है कि यह गद्यपद्यमय है, कविरचित हैँ, और हितोपदेशक है । यह काव्य' शास्त्रों का अनुसरण करता हैं । कुछ लोगों का कहना हे कि विद्यास्थान १८ हें। पूर्वोक्त १४ और उनके अतिरिक्त--१५ वार्ता, १६ कामसूत्र, १५ रित्पशास्त्र, १८ दण्डनीति । ( वार्ता = वाणिन्य-कृषिविद्या, दण्डनीति = राजतन्त्र ) । आन्वीक्षिकी, त्रयी, वार्ता, दण्डनीति--ये चारो विद्या' कहलाती हैं । আজ ५ (সন ১




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