कवि - रहस्य | Kavi Rahsya

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Kavi Rahsya by महामहोपाध्याय गंगानाथ झा - Mahamahopadhyaya Ganganath Jha

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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ध) ब्रह्माजी के वरदानं से उन्हें एक पुत्र हुआ--जिसंका नाम काव्यपुरुष” हुआ ( अर्थात्‌ पुरुष के रूप में काव्य ) ! जन्म लेते ही उस पुत्र ने यह शोक पढ़कर माता को प्रणाम किया-- “यदेतद्वाबमय विश्वमथ मूत्यां विवर्तेते । * साऊस्मि कांव्यपुमानम्व पादों बन्देय तावकों ॥! अर्थात्‌--'जा वाह्डूयविश्व ( शब्दरूपी संसार ) मूर्तिधारण करके विवर्तमान हो रहा है सो ही काव्यपुरुष मैं हैँ। हे माता तेरे चरणों को प्रयथाम करता हूँ ।? इस पद्य को सुनकर सरस्वती माता प्रसन्न हुई' और कहा---वत्स, अब तक विद्वान ग्य ही बोलते आये आज तूने पद्म का उच्चीरण किया है। तू बड़ा प्रशंसनीय है | अब से शब्द-अर्थ-सय तेरा शरीर है---संस्कृत तेरा मुख---प्राकृत बाहु--अप- . अंश जाँघ--पैशाचभाषा पैर---मिश्रभाषा वक्ष:स्थल--रस आत्मा-- छन्द लोम--अश्नोत्तर, :पहेली इत्यादि तेरा खेल--अलुप्रास उपसमा इत्यादि तेरे गहने हैं| श्रुति ने भी इस मन्त्र में तेरी ही प्रशंसा की है-- “चत्वारि खज्ञाखयाज्एय पादा द शीर्ष सप्तहस्तसोञ्स्य | त्रिधा बद्धों पभो रोरवीति महे देवो मत्यं आविश | ऋग्रेद २।८।१०।३ । इस वैदिक मन्त्र के कर अथ किये गये है । ( १ ) कमारिल- कृत तन्त्रवार्तिक ( १२1४६ ) के अजुसार यह सूय की स्तुति है । चार भङ्ग दिन के चार भाग हैं। तीन 'पाद! तीन ऋतु--शीत भीष्म, वर्षा। दो शीर्ष! दोनों छः छः महीने के अयन। सात “हाथ! सूर्य के सात घोड़े । श्रिधाबद्ध' प्रातः मध्याह-सायं-सवन ` ( तीनों समय से सोमरस खींचा जाता है)। !ईषभः इष्टिका मूल कारण प्रवतैक । रोरवीति, मेध का गजेन । 'महोदेवः बड़े




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