न्याय प्रकाश | Nyaya Prakash

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Nyaya Prakash by महामहोपाध्याय गंगानाथ झा - Mahamahopadhyaya Ganganath Jha

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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स्याय प्रकाप | জি মাক্ষষ বি অক सूचना होती है। जैसे--' यहां पर धूं द।घ्‌. १, १.३८ ₹ ॐ वि € ५५) रे ৩ करनेवाल्घी बात सबूत दो गई यह जिस वापय से साफ़ माचूम पड़े। जैसे-- इस लिए यदा भाग হু १.१ ३६। प्मनुमान का पूरा रुप यों टै- * यद्यां पर माग है ` ( प्रतिक्षा) * क्योकि यहां पर छुझ्मां है ( हेतु ) “অন্ধ দুলা বরা दै बहां জাম হবো दे जैसे रसोाइ घर में ' ( उदाहरण ) ^ यहां पर पूमां है ' ( उपनय ) * यहां पर भराग दे ' ( निगमन) इन पांचों अवयवों के ताम प्रशस्तपादमाष्य में-' प्रतिश-उप- देश-निदशीन-प्रनुसन्धान-प्रत्यासज़ाय '--कहे हैं । 1 गौतम के হু হী লাই তনক্ধী মন্তমান জী সহ্যাজী লী, হা মাহ प्रतियादी के बीच में विचार के क्रम से ही मानों गई दे।इसो से पराघे भलुमान पर इतना जोर रफकर झनुमान को पंचाधयव माना है। जब दो प्रादमी किसी बात पर सन्देद करके विचार आरभ्म करते दे जैसे जल द्रव्य है था नहीं--तो एक आदमी कदता है--' जल द्वव्य है” । यही साध्यनिर्देश फदलाता दे 1 (१) दूसरा पूछता है “यह तुप्त कैसे जानते हो।' तो इस के उत्तर मे पद्िश झादमी ফহবা ই « क्योंकि जल में रूप है “-यद्दी 'हेतु ” हुआ 1(२) इस पर फिर दूसरा आदमी पूछ सकता है- जल में कप दोने ही से पद दन्य क्यों दोगा” १। इसके उत्तर में कद्दा ज्ञाता है--जिस जिस घस्तु में रुप दे यह द्रव्य अवश्य है जैसे घड़ा, फिठाय, इच इत्यादि” इसी को ' इशन्त ' कददते देँ (३) प्रतिवादी फिर कदता हैं--+ ४ हमने माना कि वृच्च घट इत्यादि में रूप हैं इस से थे दव्म हैं: धर इससे जल क्यों द्वव्य द्वोने लगा १? “| इस के उत्तर में चाही कदृता दै--“ जज मे रूप हे ' यदी हुमा ' डमवय (8)




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