धर्म - रहस्य | Dharma - Rahasya

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Dharma - Rahasya by चम्पतराय जैन - Champataray Jain

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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(१५ ) स्वाद आता है। दोनों दशाओंमें कौर तो एक ही दारसे प्रविष्ठ हो कर एक ही मार्ग द्वारा चल कर एक ही स्थान पर पहुँचता है, परन्तु इसका क्या कारण है कि एक दशमे तो , उसका खाद आया ओर दूसरीमें नहीं ? इसका उत्तर यह है कि जीवके ध्यानमें यह विशेष शक्ति है कि उसके द्वारा आत्मा पदार्थेके सूक्ष्म परमाणुओकों अपनी ओर खींच लेता है | इसलिये जब ध्यान मुँहके कौरकी और होता है तो इस आकर्षण शक्तिके द्वारा आत्मा उसमेंसे स्वादकी सूक्ष्म पुद्ल वर्गणाओको अपनी ओर खींच लेता है । और जब इसका ध्यान कहीं और होता है तो रसके परमाणु जिह्वा ओर हलकसे उतर कर पेटमें जा पड़ते दै, परन्तु आत्मासि नहीं मिल पाते है । रसके सूक्ष्म परमाणुओंके आत्मासे मिल जाने का कीमियाई अपर यह होता है कि उसमें एक नवीन दशा श्र्थात्‌ ৭ 0 ©080051688 (ज्ञान परिणति ) उत्पन्न हयो जाती है | ओर इस नवीन दशाका नाम स्वाद या स्वादका अनुभव है | ध्यानका -- शसा प्रभाव है । उससे आत्मामें आकर्षण शक्ति उत्पन हो जाती है जिसके कारण यहं দুল द्वव्यको श्रपनी ओर खींचता रहता है और उससे मिश्रित होता रहता है । अब ध्यानका भावार्थ यहांपर सीधा- सादा इच्छा है। क्योंकि प्राणीको जिस वस्तुकी इच्छा होती है उसीकी शोर उसका ध्यान होता है । अस्तु यह प्रगट है कि जीव और पुद्रलका मेल इच्छाके कारण होता है | इस पुद्धलके भेलको दन्यकर्म कहते हैं । इच्छाका यह परिणाम तो जीव और पुद्ठलके .मेलकी अपेक्षा है । इसका दूसरा परिणाम भावोंकी अपेक्षा है जिसको भावकर्म कहना चाहिये । भावोंकी अपेक्षा इच्छासे रागद्वेषकी उत्पत्ति होती है क्योंकि इृष्ट बस्तुसे राग होता है और अनिष्ट वस्तुसे देष-। और' रागह्वेषमें




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