अर्ध कथानक | Ardha Kathanak

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Ardha Kathanak by नाथूराम प्रेमी - Nathuram Premi

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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४ कलशके युगमें उनकी घुमकड़ी शुरू हुईं और उन्होने मथुरा, कनोज, और डाहलकी यात्रा की तथा कुछ दिनोंतक डाइलके कर्ण, अणह्विलबाड़के कर्णदेव जेलोक्यमल ( १०६४-११२७ ) तथा कब्याणके विक्रमादित्य छठे (१०७६-११२७ ) के यहाँ रहे तथा सन्‌ १०८८ में विक्रमांकदेवचरितकी रचना की । उनके ग्रंथका विषय तो इतिहास है पर रह रहकर हम कबिकी आत्मकथाकी, जिसमे कोरी तीखी बातें सुनाना भी आ जाता है, झलक पाते हैं। मुसल्मानोंके उत्तर भारतमें अधिकार पानेके बाद फारसीमें एक ऐसे साहित्यका सजन हुआ जिसमें इतिदास ओर आत्मकथाका मेल है। ऐसे साहित्यकारोंमें अमीर खुसरोका नाम अग्रणी है। खुतरों ( १२५५-७२५ हि०) कवि, सिपाही, संगीतश् और सूफी थे। उनका प्रभाव काव्यक्षेत्रमे इतना चहा कि उनके पहलेके कवियोंके नामतक लोग भूख गए । उन्होने अपने जीःन्मे सात सुल्तानोंके राज्य देखे, उनमेसे कइयोंके साथ वह लड़ाइयोंपर गए. और पाच सुल्तानोंकी सेवामे ओहदेदार रहे। अपने जीवनमें उन्होंने अनेक उतार- चढाव देखे, सुल्तानोंकी विलछासिता और रागरंग देखा तथा तत्कालीन बभरताओ- पर ओंसू बहाएं। अपने दीवानोंके दीबाचोंमें खुसरोने खुलकर अपनी रामकहानी कही है और उनकी रेतिहासिकं मसनवियोभ भी आलो देखी अनेक घटनाओंका जिक्र है। ऐजाज खुसरवीमे उनके पत्रोंका संग्रह है जिनसे मध्यकारीन जीवनके अनेक छोटे छोटे अंगोंपर भी अच्छा प्रकाश पडता है। यह सच है कि खुसरोने कोई अलगसे अपना आत्मचरित नहीं लिखा, पर दीवानोंके दीबाचों और ऐतिहासिक मसनवियोंमे उसने अपनी रामकहानी इतनी छोड दी है कि उसके आधारपर ही मध्यकालके इस महान पुरुषका पूरा आंखों देखा चित्र खड्य हो जाता है। मुसलमान बादशाहोंमें तो आत्मचरित लिखनेकी परिपादी ही चल पड़ी थी ओर इसमें सदेह नहीं कि बाबर और जहॉगीरके आत्मचरितोंमें उस मनुष्यताका दर्शन और आसपासकी दुनियाका विवरण मिलता है जिसका पता मध्यकालीन साहित्यमें कम ही दिखलाई पडता है। मध्य एशियाने हमें तैमूरलंग, बानर, हैदर और अबुछ गाजीके आत्मचरित दिए हैं। फारतके शाह तहमास्पका आत्म- चरित हमें आकर्षित करता है, तथा मारतके गुल्ब॒दन बेगम और जदाँगीरके आत्मचरित प्रसिद्ध है ।




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