क्या में अन्दर आ सकता हूँ | Kya Mai Andar Aa Sakta Hu

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Kya Mai Andar Aa Sakta Hu by श्री रावी - Sri Raavi

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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सवाल बनाभ सिभरेट १४ “बात कुछ नहीं । सिगरेट लाभो और मौज करो । तुम्हें कोई चीज चाहिए (1. “नहीं साहब, लेकित---” “तब फिर लेकिन वेकिन कुछ नहीं। सिगरेट लाझो और अपना काम करो ।, नौकर जानता था कि साहबको ज़रा भी अधिक बोलनेंके लिए प्रेरित करना उनके लिए हानिकारक होगा । विवश होकर वह चुप हो जाता था । सिगरेटकी दवा कई दितसे चलते-चलते अब समाप्त हो आई थी, और गाँवके जिस डाक्टरने वह दवा बनाई थी वहू मर चुका था । वह दवा अब कहाँसे आये, श्रौर दवा न भ्रा सके तो कप्तानको शहरके श्रस्प- तालमें स्थायी रूपसे रोग-निवारणके लिए किस तरह पहुँचाया जाय, ये ही प्रश्त नौकरके मनमें चक्कर लगा रहे थे, भौर इन्हें ही वह कप्तानके सामने रखता चाहता था। लेकिस कप्तानके कठिन स्वभाव भौर हृठधर्मी के कारण बहू भ्रभी तक अपनी बात उसके सामने नहीं रख पाया था । अ्रगली बार कप्तानको सिगरेट देते हुए नौकरने कहा---- साहब, यह आखिरी सिगरेट है ।” “लाभो श्राखिरी सिगरेट, यह पहली जैसी ही श्रच्छी है ।” कप्तानने उसके हाथसे सिगरेट लेते हुए कहा भौर धुआँ उगलते लगा । तीन घंटे बाद उस कप्तान, श्रौर उसके नौकरपर जो कुछ बीती उस्तका अनुभान श्राप भी कर सकते हैं । चिकित्सा विज्ञातका एक अंग है जिसे तात्कालिक चिकित्सा या पहला सहारा 778६ /४५ कहते हैं। उस पहले सहारेसे बीमारी या चोट भोड़ी देरके लिए प्रायः दब जाती 'है और पीड़ितकों कुछ भारम्‌ भिल जाता है, लेकिन यह पहला सहारा रीगकों दूर नहीं कर पाता । ईस' पहले सहारेका दीर्भ काल तक सहारा लिया जाता रहे और कप्टके स्थायी निवारणका प्रयतत न किया जाग तो यह पहला सहारा बहुत हानिकारक भी हौ सक्ता दै । रीग बाहरसे दबकर




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