नये नगर की कहानी | Naye Nagar Ki Kahani

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Naye Nagar Ki Kahani by श्री रावी - Sri Raavi

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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[ १ ] उस बार डेढ़ महीने की यात्रा के बाद जवं मै श्रपनै कैलास आश्रम में लोटा तो देखा, मेरे लिखने-पढ़ने की जगह पर एक साधु महाराज ने डेरा डाल रक्‍्खा है। आगरा नगर से कोई पाँच मील पश्चिम, यमुना के तट पर, कैलास महादेव नाम की एक छोटी-सी बस्ती है । उसके एक कोने में बंगाल प्रान्त के राज्य बर्दवान के भूतपूर्व महाराजा की, जो भूमानन्द सम्प्रदाय के आचार्य भी थे, बनवाई हुई एक अन्दर इमारती गुफ़ा और छुतरी है, ओर सच पूछिये तो इसी यमुना-तट की छतरी के आकर्षण से खिंच कर मेंने इस कैलास बस्ती को अपना साहित्यिक उपनिवेश बना लिया हे । लिखने के लिए में प्रायः इस छुतरी में ही प्रति दिन चला आता हूँ । तो उस दिन छुतरी की ऊपरी सीढ़ियों पर पाँव रखते ही मेरी दृष्टि जब उन महात्माजी पर पढ़ी तो मेरा हृदय ज्ञोभ से भर गया | आजकल के साधु महात्माओं से में आमतौर पर घृणा करता हूँ | में समझता हूँ कि स्वच्छु, एकान्त और रम- णीक स्थानों को स्वस्थ चिन्तकों और कलाकारों के लिए छोड़ कर इन साधुओं को ऐसे मंदिरों और मठों में ही डेरे डालने चाहिए जहाँ सदाबरत बँटते हों ओर जहाँ से चरस और गाँजे के ठेके समीप हों । छतरी के गोल मंडप के बीचोबीच संगमरमर की वेद्री पर




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