पहला कहानीकार | Pehla Kahanikar

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Pehla Kahanikar by श्री रावी - Sri Raavi

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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कहानीका मोल १३ आपके बराबर सुन्दर या धनी नहीं हैं ? मैंने और आपने एक दूसरेके लिए कुछ किया भी नहीं, मेरा आपका कोई परिचय भी नहीं, आपके दूसरे भाइयोंको मैंने देखा तक नहीं । इस गाँवके और आसपासके अनेक गाँवोंके जो सुन्दर युवक मुझसे इतने दिनोंसे प्रेम करते आ रहे. हैं, क्या आप समभते हैं कि मुझे उनका कुछ भी ध्याव नहीं होवा चाहिए ?” सुन्दरीने कुछ रूखे-से स्वरमें कहा । । “तुम्हारी इच्छा ।” युवकने हताश-से स्वरमें कहा और' लौट गया । उसके असफल लौट आनेपर दूसरे भाईकी बारी आयी । सुन्दरीके पास जाकर उसने कहा-- “सुन्दरी, तुम जैसी सुन्दर तरुणी मैंने आज तक नहीं देखी थी । सच- मुच वे बड़े भाग्यवान्‌ पुरुष होंगे, जिनसे तुम विवाह करोगी । मैं और मेरे दो भाई तुम्हारे सुन्दर रूप पर मुग्ध हैं और हम तीनों भी तुमसे विवाह करनेके ' अभिलाषी हैं ।” “आपमें सुन्दरताकी परख अच्छी है ।” युवतीने मुसकराते हुए कहा, “क्यों न हो, आप स्वयं भी तो सुन्दर हैं। आप समभ सकते हैं, कुछ और भी युवक मुभसे प्रेम करते हैं और विवाहके इच्छुक हैं। आप कुछ दिन इस गाँवमें रहें तो मैं दूसरे युवकोंके साथ आपकी' इच्छा पर भी विचार कर सकती हूँ । “यहाँ अधिक दिन रुकना तो हमारे लिए बहुत कठिन होगा, फिर भी में जाकर अपने दूसरे भाइयोंसे सलाह करूँगा |” युवकने कहा और वह भी कुछ निराश-सा ही छौट गया । उस गाँवके बाहर जिस पेड़के नीचे ये लोग ठहरे हुए थे, वहाँ पहुँच कर उसने अपनी बात-चीत दीनों भाइयोंकों सुनाई । जिस समय वह सारा हाल सुना रहा था, गाँवके कुछ नवयुवक उधरसे निकले । उनमें से दो-तीन तो इन तीनों यात्रियोंसे कहीं अधिक सुन्दर थे । “इस गाँवमें हम' छोगोंसे भी अधिक सुन्दर कुछ युवक मौजूद हैँ” ১১)




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