Sant Kabir by

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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ध् संत कबीर के कारण इसमे पूर्वीपन ही श्रधिक होना चाहिए. | फिर कबीर की बोली पूरबी ही अधिक होनी चाहिए क्योकि उन्होंने कहा भी है कि उनका सारा जन्म सिवपुरी काशी में ही व्यतीत इुछा । इस पजाबीपन का कारण स्वयं श्रंथ के सपादक बाबू इंयामसुन्द्रदास की समझ में नद्दी ता । वे लिखते हैं या तो यह लिपिकत्ता की कृपा का फल है अथवा पंजाबी साधु्रो की संगति का प्रभाव है । यदि यह पंजाबीपन लिपिकर्त्ता की क्ञपा का फल है तो प्रति में कबीर साहब का शुद्ध पाठ ही कहाँ रहा ? श्रौर यदि यह पंजाबी साधुश्रो की सगति का प्रभाव है तो क्या बनारस में रहने वाले कबीर साहब पर बनारस की बोली या बनारस के साधु का कुछ भी प्रभाव नहीं पड़ा १ संपादक द्वारा दिए गए. ये दोनो कारण केवल मन समसाने के लिए है । इस संस्करण में जो पाठ प्रामाणिक माना गया है उसमें भी झनेक भूले है । इस्त- लिखित प्रतियो में एक लकीर में सभी शब्द मिलाकर लिख दिए. जाते है। एक शब्द दूसरे शब्द से झलग नही रहता । अतः पक्ति को पढ़ने में दृष्टि का श्रभ्यास होना चाहिए जिससे शब्दो को झलग शलग क्रम में स्पष्ट पढ़ा जा सके | दस्तलिखित प्रति को छुपाते समय संपादक को संदर्भ झ्ोर झ्रर्थ समक कर शब्दों का स्पष्ट रूप लिखना चाहिए । कबीर भ्रंथावली में अनेक स्थलों पर शब्दों को झलग-झलग लिखने में भूल हो गई है । कही एक शब्द दूसरे से जोड दिया गया है कहीं किसी शब्द को तोड़कर आगे और पीछे के शब्दों में मिला दिया है जिससे श्रर्थ का झ्रम्थ हो गया है । उदाहरणा्थ राग गौडी के बारइवें पद की दो पंक्तियाँ लीजिए -- घोल मद्रिया बेलर बाबी कऊ्ा ताल बजावे । पदरि चोल नांगा दद्द न्गचे मैंसा निरति करावे ॥ सरल जनम सिवपुरी गवाइया । मरती बार मगइरि उठ झाइआ शरागु गोढ़ी ११ कबीर गप्रन्थावली पृष्ठ &९




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