मानक हिन्दी कोश | Manak Hindi Kosh

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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फरमाइश १० फरमे छप गये हैं, अभी पाँच फरमे और बाकी हैं। ३ छापेखाने मे, ढाँचे मे कसी हुई छपनेवाली सामग्री । फरमाइश---स्त्री ० [फा० फ़र्माइश] १ वह्‌ चीज जिसके लिए किसी ने अनुरोध किया हो। २ किसी काम या बात के लिए दी जानेवाली आज्ञा विशेषत प्रेमपुर्वेंक दिया हुआ आदेश। फरमाइशी--वि० [फा०] १ जो फरमाइश करके बनवाया यथा मंगाया गया हो। जैसे--फरमाइशी जूता । २ फरमाइश के रूप मे होनेवाला । फ्रभान--ु ० [फा० फर्मान] १. कोई आधिकारिक विशेषत राजकीय आदेश। २. वह पत्र जिसमे उक्त अदेश लिखा हो। फरमाना--स ० [फा० फर्मान] कोई बात कहना। (बडो के सबंध से सम्मान-सूचक रूप मे प्रयुक्त) जैसे--आपका फरमाना बिलकुल दुरुस्त है । फरयाव[---स्त्री ० -फरियाद। फरयारी ---रत्री ° [हि० फाल] हर मे की वहु लकडी जिसमे फाल (फल) लगा रहता है। खापी। फरराना{--भ०, स० -=फहुराना । फरलाग--पु० [ अ० फरलाग |] भूमि की धूरी नापने का एक मान जी २२० गज के बराबर होता है। फरलो--स्त्री० (० फरलाग ] सरकारी नौकरों को आबे वेतन पर मिलनेबाली लबी छुट्टी । फरवरी--पु० [अ० फ्रेम्रुअरी | अँगरेजी सन्‌ का दूसरा महीना जो अद्ठा- इस दिन। का, परन्तु ऊौद के वर्ष, उन्‍्तीस दिनों का होता है। फरवार[--पु० --खलिहान । फरवारी | --रत्री० [हिं० फरवार +-ई (प्रत्य०)] उपजे हुए अन्न या फसल का वह भाग जो किसान खलिहान मे से राशि उठाने के समय ब्राह्मण, बटू, नाई भादि को देते है। फरबी--रतरी ० [स० स्फुरण | १. एक प्रकार का भूना हुआ चावल जो भुनने पर अन्दर से पोला हां जाता है। मुरमुरा। २ द० 'लाई'। फरुही । फरश---पु० [अ० फश ] १ बँंठने के लिए बिछाने का कपड़ा। बिछा- बन। २ कमर आदि की पक्‍की और समतल भूमि जिस पर लोग बैठते है। ३ समतल प्रसार या फेलाव। जैसे--फूछो। का फरश। फरदाबद--पु० [फा०| वहू ऊंचा और समतलरू स्थान जहाँ गच का फरण बना हौ) फरश्ी--वि० [अ» फ़र्शी] १ फरश-सबधी। फरश का । पद--फरक्ौ सलाम = बादशाह आदि को किया जानेवाला वह्‌ सलाम जिसमे आदमी केण इस प्रकार क्ुकना पड़ता था कि उसका सिर लगभग फरणश तक पहुँच जाता था। २. जो फर्श पर रखा जाता या काम में छाया जाता हो। जैसे-- फरश्ी जुता, फरशी झाड़, फरशी हुक्का आदि। प्रब--फरक्षी गोला _-आतिशबाजी मे वह गोला जो फरश पर पटकने पर भावाजं देता है । स्त्री० १ कुछ खुले मुँह का धातु का वह आधान या पात्र जिस पर नैचा और सटक लगाकर तमाक्‌ पीते है। २ उक्त पात्र और नैचे, सटक भादि से युक्त हुकका | गुड़गुडी। ३. पुरानी चाल की बदूक का वह अग जिसमे गज रखा जाता था। ४-२ करां फरसग--पु० [फा० फर्संग] ४००० गज या सवा दो मील की दूरी का एक नाप। फरस---पु० १ दे० 'फरसा'। २ देऽ फरशः) फरसा--पु० [स० परशु] १ पैनी और चौडी धार की एक प्रकार की कुल्हाडी, जो प्राचीन काल मे युद्ध के काम आती थी। २. फावडा। फरसी--गवि ०, स्त्री० ->फरशी। फरहूंंग--स्त्री० [फा० फरहग |] शब्द-कोश। फरहटा† --पू० [हि° फाल] [स्तव्री° अन्पा० फरहटी ] बस, खकंडी आदि की पतली, लबी पढ्टी । फरहत--स्त्री० [अ० फहँत ] प्रफुत्लता। फरहद--¶० [स ० पारिभद्र, पा० परिमहु; प्राण पारिहृद्‌] एक प्रकार का वृक्ष जो बगाल में समुद्र के किनारे बहुत होता है। वहाँ के छोग इसे पालितेमदार कहते हैं। फरहर|--वि० [स० स्फार;प्रा० फार-अलूग-अलग, अथवा फरहरा ] १ जौ एक में लिपटा या मिला हुआ न हो, अलग-अलग हो। जैसे-- फरहर भात। २ साफ। स्पष्ट। हे निर्मल। शुद्ध। ४ (मन) जिसमे उदासीनता, खेद आदि न हो। प्रफुह्लित। प्रसन्न। ५. चालाक। होशियार। फरहरना--अ०, स०, [अनु० फरफर] (१.ल्‍फरफराना। २. फह- राना। फरहरा--पु० [ हि० फहराना] १ कपड़े आदि का वह लतिकीना या चौकोना टुकड़ा जिसे छड के सिरे पर लगाकर क्षडी बनाते है और जो हवा के झांके से उड़ता रहता है। २ झड़ा। पताका। वि०->फरहर। (देखें) फरहराना---अ०, स०>फरहरना | फरहूरी| --स्त्री० [हिं० फल +हरा ([प्रत्य०)] वृक्षों के फल या उन्हीं के वर्ग की और चीजे जो खाई जाती हौ । फलहरी। লি, स्तरी° फनाहारी। उदा०--सुख करिार फरहरी खाना। --जायसी । फरहा† --पु° [ हि० फल | धुनियों की कमान का वह चौडा माग जिस पर से होकर ताँत दीनो सिरो तक जाती है। फरहाव--पु० [फा० फ्हद ] एतिहास-प्रसिद्ध एक प्रेमी जिसने अपनी प्रेमिका शीरी के आदेश पर पहाड़ काटकर तहर बनाई थी। कहते है कि किसी कुटनी के धोखा देने पर वह्‌ अपना सिर फोडकर मर गया। फरही| --स्त्री० [हि० फरहा ] छकडी का वह चौडा टुकड़ा जिस पर ठठेर बरतन रखकर रेतो से रेतते हैं। फरा| --पु० [देश०] एक प्रकार का व्यजन जो चावल के आटे को गरम पानी मे गूँथकर और पतली बत्तियाँ बनाकर पानी की भाष में उबालने से बनता है। फराका ---पु० [फा० फराख] १ मैदान। २. आयताकार रथान। वि० लबा-चौडा। विस्तृत । पु० [अ० फ्राक] छोटी लडकियों के पहिनने का अँगरेजी ढंग का एक तरह का लबा पहनावा। फराकत-- ति ० = फराख १ आनद। प्रसन्नता। २. मन की




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