बाल शिक्षा | Baal Shiksha

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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सदाचार्‌ उपस्पृश्य द्विजो नित्यमन्नमद्यात्समादितः। भुक्त्वा चोपस्परोत्सम्यगद्धिः खानि च संस्पृरोत्‌ ॥ (२५३) 'द्विजको चाहिये किं सदा आचमन करके ही सावधान हयो अन्नका भोजन करे ओर मोजनके अनन्तर भमी अच्छी प्रकार आचमन करे ओर छः चरका (अर्यात्‌ नाक, कान थैर नेत्रोंका ) जल्से स्पर्श करे | पूजयेदश्चनं नित्यमद्याच्चेतदकुत्सयन्‌ । दघ्या इ्येखसीदेच्च अतिनन्देचच सर्वशः ॥ ( २। ५४ ) भ्ोजनका नित्य आदर करे और उसकी निन्‍्दा न करता हुआ भोजन करे, उसे देख हर्षित होकर प्रसन्नता प्रकट करे । ओर सव प्रकारसे उसका अमिनन्दन करे 1 पूजितं ` ह्यरानं नित्यं चरमं च यच्छति । अपूजितं ठ॒ तद्मुक्तमुमय॑ नाइयेदिदम्‌ ॥ (२। ५५ ) 'क्योंकि नित्य आदसरपूर्वक किया हुआ मोजन वछ और वीर्यको देता है और अनादरसे खाया हुआ अन्न उन दोनोंका नाश करता है | - अनारोग्यमनायुष्यमखर्ग्ये चातिभोजनम्‌ । अपुण्यं छोकविद्विप्ट- तस्माचत्परिवर्जयेत्‌ ॥ (२1५७ ) छ




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