बाल शिक्षा | Baal Shiksha
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
2 MB
कुल पष्ठ :
78
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)सदाचार्
उपस्पृश्य द्विजो नित्यमन्नमद्यात्समादितः।
भुक्त्वा चोपस्परोत्सम्यगद्धिः खानि च संस्पृरोत् ॥
(२५३)
'द्विजको चाहिये किं सदा आचमन करके ही सावधान हयो
अन्नका भोजन करे ओर मोजनके अनन्तर भमी अच्छी प्रकार
आचमन करे ओर छः चरका (अर्यात् नाक, कान थैर
नेत्रोंका ) जल्से स्पर्श करे |
पूजयेदश्चनं नित्यमद्याच्चेतदकुत्सयन् ।
दघ्या इ्येखसीदेच्च अतिनन्देचच सर्वशः ॥
( २। ५४ )
भ्ोजनका नित्य आदर करे और उसकी निन््दा न करता
हुआ भोजन करे, उसे देख हर्षित होकर प्रसन्नता प्रकट करे ।
ओर सव प्रकारसे उसका अमिनन्दन करे 1
पूजितं ` ह्यरानं नित्यं चरमं च यच्छति ।
अपूजितं ठ॒ तद्मुक्तमुमय॑ नाइयेदिदम् ॥
(२। ५५ )
'क्योंकि नित्य आदसरपूर्वक किया हुआ मोजन वछ और वीर्यको
देता है और अनादरसे खाया हुआ अन्न उन दोनोंका नाश
करता है |
- अनारोग्यमनायुष्यमखर्ग्ये चातिभोजनम् ।
अपुण्यं छोकविद्विप्ट- तस्माचत्परिवर्जयेत् ॥
(२1५७ )
छ
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