गुलेरी-ग्रन्थ खंड - 1 | Guleri Grantha Khand - 1
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
6 MB
कुल पष्ठ :
296
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)पृथु वैन्य का अभिषेक
युं चै वैन्यो मनुष्याणा प्रथभोड्मिषिषिचे | (शतपथ ब्राह्मण )
चेन का पुत्र प्रथु ( जिसके पीछे आज तक प्रथिवी या प्रथ्वी
कहलाती है ) ऊपर लिखी हुई श्रुति के अनुसार मलुष्यों में पहले-
पहल ही अभिषिक्त हुआ । उस समय की प्राचीनता का अनुमान
महाभारत के इख वणन से हो सकता है कि उस
प्राचीन समय, कृतयुग में
धरती सव विषम थी, जैसी सन्वेतते मे सषि ॐ पीदं ह्या करती
है! परथिवी विना खेती किए पक्नेवाले पटायें दिया करती थी.
पेड़ों के खोते खोलते में मधु ( शहद ) मिलता था और गौरे लितना
चाहते उतना दूध दिया करतों। खुखस्पश, सुखदायक बृक्त थे
जिनके वर्लों ( वल्कलों और पत्तों ) को पहन कर प्रजा उनसे ही
सो रहती। अमृत से मीठे फल ओर मधु यही उसका आहार
था ओर वह कभी भी नहीं रहती । सलुष्य नीरोग, सबसिद्धाय,
किसी से भी न डरते, यथेच्छ वक्तो मे और गुफाओ मे रहा करते ।
न राष्ट्र चेंटे हुए थे न पुर. प्रजा भी उस समय सौज के अनुसार
प्रसन्न थी। उस पूर्व लिसर्ये से विषम भूतल से पुरों और ज्रामों का
विभाग न था, न खेती होती थी न गोरक्षा, न व्यापार न लेन-देन !
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