गुलेरी-ग्रन्थ खंड - 1 | Guleri Grantha Khand - 1

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Guleri Grantha Khand - 1  by बाबू रामचंद्र वर्मा - Babu Ramchandra Varma

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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पृथु वैन्य का अभिषेक युं चै वैन्यो मनुष्याणा प्रथभोड्मिषिषिचे | (शतपथ ब्राह्मण ) चेन का पुत्र प्रथु ( जिसके पीछे आज तक प्रथिवी या प्रथ्वी कहलाती है ) ऊपर लिखी हुई श्रुति के अनुसार मलुष्यों में पहले- पहल ही अभिषिक्त हुआ । उस समय की प्राचीनता का अनुमान महाभारत के इख वणन से हो सकता है कि उस प्राचीन समय, कृतयुग में धरती सव विषम थी, जैसी सन्वेतते मे सषि ॐ पीदं ह्या करती है! परथिवी विना खेती किए पक्नेवाले पटायें दिया करती थी. पेड़ों के खोते खोलते में मधु ( शहद ) मिलता था और गौरे लितना चाहते उतना दूध दिया करतों। खुखस्पश, सुखदायक बृक्त थे जिनके वर्लों ( वल्कलों और पत्तों ) को पहन कर प्रजा उनसे ही सो रहती। अमृत से मीठे फल ओर मधु यही उसका आहार था ओर वह कभी भी नहीं रहती । सलुष्य नीरोग, सबसिद्धाय, किसी से भी न डरते, यथेच्छ वक्तो मे और गुफाओ मे रहा करते । न राष्ट्र चेंटे हुए थे न पुर. प्रजा भी उस समय सौज के अनुसार प्रसन्न थी। उस पूर्व लिसर्ये से विषम भूतल से पुरों और ज्रामों का विभाग न था, न खेती होती थी न गोरक्षा, न व्यापार न लेन-देन !




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