खेती और भोजन | Kheti Aur Bhojan
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
2 MB
कुल पष्ठ :
104
श्रेणी :
हमें इस पुस्तक की श्रेणी ज्ञात नहीं है |आप कमेन्ट में श्रेणी सुझा सकते हैं |
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about आचार्य विनोबा भावे - Acharya Vinoba Bhave
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)कपि श्रौर सरकार ह
बनाया जाता भारत की खाद्य समस्या कोरे अमेरिकी ट्रेक्टरों
और रासायनिक खादों के भरोसे हल होने के वजाब बविगड़ती
আবী |
वतस्पति घी की मिलों के कारण देश की, स्वास्थ्य के
अतिरिक्त, आ्थिक दृष्टि से भी भयंकर क्षति हो रही है।
' आर्थिक क्षति का मतलव ही यह है कि हम दीव और दुर्वल
हो रहे हैं । यानी हम ऊंचे दर्ज के पौष्टिक भोजन प्राप्त करने
के सामर्थ्य से वद्चित कर दिये जाते हैं। वनस्पति की मिलों
के आँकड़ों पर विचार कीजिये--इस समय २२६ करोड़ की
'पूजी इसमें लगी हुई है। १५००० मजदूर काम करते हं ।
इन मिलों से जो दूषित चीज तैयार होती है, यदि उसे चिकना
मान भी लिया जाये तो भी देश की जरूरत पूरी नहीं होती ।
'হহ্ঠ करोड़ में कम से कम € लाख घानियाँ चालू की जा
सकती हैं। और कम से कम €००००० आदमी और
६००००० बैलों को पुरी जीविका मिल सकती है, जब कि
मिलों से कुल १५००० आदमियों को काम मिलता है | লাই
देश को पूरा शुद्ध तेल जितना चाहिये उससे बहुत अधिक इन
घानियों के द्वारा पैदा होगा । तेल का वह आधिक्य तथा
घानियों से मिली हुई खली जो वनस्पति की मिलों में बर्बाद
हो गयी है, हमें घनाधिक्य के रूप में प्राप्त होगी ।” इस प्रकार
हेम देख सक्ते हँ कि वनस्पति मिलो की वतमान नीति यानी
खाद्य तेलों से वनस्पति तैयार करने की नीति से भयंकर
'खाद्य एवं आर्थिक हानि हो रही है । यदि ये मिलें खाद्य तेलों
User Reviews
No Reviews | Add Yours...