मेरी प्रिय कहानियां | Meri Priy Kahaniyan
श्रेणी : कहानियाँ / Stories
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
3.74 MB
कुल पष्ठ :
174
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
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१६. मेरी प्रिय कहानियां
है। हवा में जे धिपर जाते । मेरे अन्दर भी जरें ब्ियरन लगते । में
उसका हाय फिर द्वाय में कस लेती । चुपचाप उसकी बाॉयों में देखती
“रहती । मगर कहीं सवार नजर न आती । मांगों भी टसती-सी
लगती ।
तो मन की होती है,” बह कहती । “अपने से ही पानी होती
है । वाहर से फौच फिसीकों पुणी दे सकता है ? '
बहुत स्वाभाविक ढंग से व कहती, मगर मुझे लगता शूठ बोल रही
है। उसकी मुसकराती आंखें भीगी सी लगतीं । एक ठण्टी सिह॒रन मेरी
उंगलियों में उतर आती ।
“वह आजकल कहां है ? ” में पूछ लेती ।
“कौन ?'' वह फिर भूठ बोलती ।
“चही, संजीव ।””
क्या पता ?'” उसकी भींहों के नीचे एक हत्की-सी छाया कांप
जाती, पर वह उसे आंखों में न आने देती । “साल-भर पहले कलकत्ता में
था”
“इघर उसकी चिट्ठी नहीं आई ? ””
नहीं । कर
तूने भी नहीं लिखी ? ””
“क्यों ? “'
वह हाथ छुड़ा लेती । दरवाज़े की तरफ देखती जैसे कोई उघर से
भा रहा हो । फिर मपनी कलाई में कांच की चूड़ियों को ठीक करती ।
आंखें मुंदने को होतीं, पर उन्हें अ्यत्न से खोल लेती । मुझे लगता उसके
होंठों पर हरकी-हत्की सलवर्टे पड़ गई हैं। “वे सब वेवकफी की बातें
'थीं,” वह कहती । दे
मन होता उसके होंठों और आंखों को अपने बहुत पास ले आआऊं।
उसकी ठोड़ी पर ठोड़ी रखकर प्रूछूं, 'तुझे विश्वास है न तू खुश रहेगी ?
मगर मैं कुछ न कहकर चुपचाप उसे देखती रहती । वह मुसकराती सर
कोई घन गुनगुनाने लगती 1 ३... उठ जाती । ममी मुझे दूंढ
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