श्री जवाहर लाल जी की जीवनी भाग 2 | Shri Jawahar Lal Ji Ki Jivani Part -ii

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Shri Jawahar Lal Ji Ki Jivani Part -ii by इन्द्रजीत शास्त्री -Indrajeet Shastriशोभाचन्द्र भारिल्ल - Shobha Chandra Bharilla

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इन्द्रजीत शास्त्री -Indrajeet Shastri

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शोभाचन्द्र भारिल्ल - Shobha Chandra Bharilla

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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হই के सदस्पां ने उसे देखकर छुपा लेने फी स्वीक्षति दे दी। यहाँ सफ सो संतोषज्ननक् शीघ्रता से काम चता रहा । इतमनी विशाल जीयनी के लिखने में शीध्रता करने पर भी काफ़ी समय खग गया था भौर दसी पोष पूज्यधी का स्थगवास मी दो गया या, हम दोनों कारणों से पूज्यक्षी ५ मक्त भ्रञकगण जददी से जल्‍दी उनकी ज'घनी पढ़ना चाहते थे । हम स्वय भी यद्दी घाहते थे कि शीघ्र ही पाठकों कै हाय मेँ जोपनी पहुँचा दें । इस शीघ्रता के ज़याल से हमने जीवनी फो दिदक्षी में छुपाने का झायोजन किया। मगर बद्दावव चरिवताय हुई--चौवेजी छब्ये घनने चले झौर रह गये टुरे दो ।! प्रधम तो विश्वयुद्ध फे कारण कागजों ङौ वेद कमी हो गद भौर कार्यकर्ताओं का मिलना कठिन हो गया, तिस पर प्रेसों का कार्य इतना बढ़ गया कि ठड्ठें काम झुग्ताना कठिन हो गया। सीयनी जढदी छाप देने के लिए हम तकाज़े पर तकाज़े करते रहे, मगर सेद दे कि हमारे हप्ामे किसी काम न झाये । वाद में देश का विभाजन होने के अन-तर देहसोी में लम्बे रस पक घोर झशातति यनोी रही भर इस कारण भी काम द्वोने में विज्म्य हो गया। इसी भर्पे में प० पूण«» অলী दक न्यायतीर्थ को भ्फ-सशोधन के किए देदलों भेजना पढ़ा। वे वरहो इष दिनों হই भौर আঁ'সনী হ্ষা अधिकांश भाग छप भी गया। मगर बीच में छपाई का काम रुक ज्ञाने से वे वापिस सौर आाये और अगक्षा भाग छपने में फिर देरी दो गई | इस प्रकार जीवनी के छुपने में भ्र्तम्य झौर झाशातठीद विज्ञम्ध हो गपा है । उत्सुक और प्रेमी पाठकों से इसके लिए दम তলা মালা करते हैं। हमारे स्थय करने का काम द्वोता तो दम अपने सभी फार्य छोड कर इसे सघप्रथम पूर्ण करते | मगर लाखारी थी | प्रेस झपना था नरह । तकाजा करने फे सिचाय शरीर कोई उपाय नहीं था | झाशा है इस विषयादा-ज-य पिल्लम्थ के लिए पाठक छमा प्रदान करंगे। টি जीवनी का यह प्रथम माग दै। इसमें पूज्पश्री के यात्यकाल स॑ लेकर भ्रीत्मम समय तक का विवरण घचौमासों के क्रम से दिया गया दै। पप-ऋम से जीयनी छिखना विशेष उपयोगी इस कारण समझा गया कि इस शेक्षी से लिखी हुई जीवनी में ध्योरे डी सभी यातठों का समापेश दो जाता है । पादश स्वये देखंगे कि पृउ्प्श्मी की यद्द जीवनी, फेघल उनशी বল হী লা ই, ছি पूज्यप्री हुकमीचद्रण्वी महाराज के सम्प्रदाय का पचास दप का इतिददास है। इसमें सम्प्रदाय सबधी सुप्य मुझ्य समी विषय লা गये हैं और साथ दी समम स्थानकऋ-थासी प्माभ से समघ रखने घाली से तो का भी यथास्थान समावेश कर दिया गया है । जीवनी में एक प्रकरण श्रद्धाश्म्षियों का है, प्ज़्यभी का विदारक्षेश्र यहुत पिस्तृत रहा है । मारचाद भोर साला तो ध्ापके मुख्य घत्र ये द पने मह।पष्टर, यशदं दुली जमनापार, गुनरात, काठियावाद, आदि दूर दूर के परदेशों में विद्वार किया था। आप अपने प्रमाष5 उपदेशो के फरण নত লং भारियों की भ्रद्धा भक्ति के पात्र यने हैं| ऐसी द्वाद्वत में ग्ापके प्रशंसकों ढी धख्या यहुत अधिक होना स्यामाविक दे | परिणामस्वरूप हमारे पास श्रद्धामम॒लियाँ हृतनी उपादा आई की यदि उन पथ को स्थान दिया जाता तो प्रयय और यहुत मोरा चन जाता । ध्तपुत्र स्थ नामाय के कारण जिन लेखकों की धद्धामशज्ति दम नहीं प्रकाशित कर सके हैं, उन के प्रति छमप्ताप्रथों हैं। जीवनी के चस्त में कुछु परिशिष्ट दिये गये हैं। उनझा विशेष सबंध सेर।पथ सम्प्रदय के साथ উই 1 छेरापवी भाहयों ने मिन चर्चा्ों के विषय में गह़्तऋदमी ঘত্রহ है, उमका ययाथ




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